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योग- शास्त्र
गणधरों के मुख से उद्गत विद्या का जाप करना चाहिए। वह विद्या
इस प्रकार है
" जोग्गे मग्गे तच्चे भूए भविस्से अंते पक्खे जिणपार्श्वे स्वाहा ।”
कार का ध्यान
फडिति प्रत्येकमक्षरम् । सव्ये न्यसेद्विचक्राय स्वाहा बाह्येऽपसव्यतः ॥६४॥
षट्कोणेऽप्रतिचक्रे
भूतान्तं बिन्दुसंयुक्त तन्मध्ये न्यस्य चिन्तयेत् । नमो जिणाणमित्याद्यैरों - पूर्वैर्वेष्टृयेदहिः ॥ ६५ ॥
एक षट्कोण यंत्र का चिन्तन करना चाहिए जिसके प्रत्येक खाने में 'अप्रतिचक्रे फट् - इन छह अक्षरों में से एक-एक अक्षर लिखा हो । उस यंत्र के बाहर उलटे क्रम से "विचक्राय स्वाहा' – इन छह अक्षरों में से एक-एक अक्षर कोनों के पास लिखा हो और बीच में बिन्दु युक्त ओंकार हो । तत्पश्चात् इन पदों से पिछले वलय की पूर्ति करनी चाहिए
'नमो जिणाणं, त्रों नमो अहि-जिणाणं, प्रों नमो परमोहिजिणाणं, त्रों नमो सव्वोसहि- जिणाणं, श्रों नमो अनन्तोहि जिणाणं, श्र नमो कुट्ट बुद्धीणं, प्रों नमो बीय बुद्धीणं, प्रों नमो पदानुसारीणं, श्रों नमो संभिनसोप्राणं, प्रों नमो उज्जुमदीणं, त्रों नमो विउलमदीणं, श्रों नमो दस-पुव्वीणं, श्रों नमो चउदस-पुवीणं, श्रों नमो अट्ठग-महानिमित्त कुसलाणं, प्रों नमो विउव्वण- इड्ढिपत्ताणं, प्रों नमो विज्जाहरणं, श्रों नमो चारणाणं, प्रों नमो पण्णसमणाणं, त्रों नमो आगास- गामीणं, श्र ज्सौंसौं श्री ही धृति - कीर्ति- बुद्धि-लक्ष्मी स्वाहा ।'
फिर पंच परमेष्ठी महामन्त्र के पाँच पदों का पाँच अँगुलियों में न्यास करना चाहिए, वह इस प्रकार है
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