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योग-शान .. पत्रों-पंखुड़ियों की गणना पूर्व दिशा से प्रारंभ करनी चाहिए। इस क्रम से पूर्व दिशा की पंखुड़ी पर 'ओं' स्थापित करना चाहिए और फिर यथा-क्रम शेष दिशाओं में शेष सात वर्ण स्थापित करने चाहिए। इस अष्टाक्षरी मंत्र का कमल के पत्तों पर ग्यारह सौ बार जाप करना चाहिए। .. पूर्व दिशा की प्रथम पंखुड़ी पर 'ओं और शेष पंखुड़ियों पर अनुक्रम से शेष सात वर्ण स्थापित करके योगी को समस्त विघ्नों को शान्त करने के लिए आठ दिन तक इस मन्त्र का जाप करना चाहिए।
आठ दिन व्यतीत हो जाने पर इस कमल के पत्रों पर स्थापित किए हुए अष्टाक्षरी विद्या के आठों वर्ण अनुक्रम से दिखाई देने लगते हैं।
जब योगी इन वर्गों को देखने लगता है, तो उसमें ऐसा सामर्थ्य उत्पन्न हो जाता है कि ध्यान में विघ्न करने वाले भयानक सिंह, हाथी, राक्षस और भूत-पिशाच आदि तत्काल शान्त हो जाते हैं।
जो लोग इहलोक सम्बन्धी फल के अभिलाषी हैं, उन्हें 'नमो अरिहंताणं' यह मन्त्र ओंकार सहित चिन्तन करना चाहिए और जो निर्वाणपद के इच्छुक हैं, उन्हें ओंकार रहित मंत्र का चिन्तन करना चाहिए। अन्य मंत्र और विद्या
चिन्तयेदन्यमप्येनं मन्त्रं कमौंघ - शान्तये ।
स्मरेत्सत्वोपकाराय विद्यां तां पापभक्षिणीम् ॥७२॥ कर्मों के समूह को शान्त करने के लिए दूसरे मन्त्र का भी ध्यान करना चाहिए । वह यह है
'श्रीमद् ऋषभादि-वर्धमानान्तेभ्यो नमः ।' प्राणियों के उपकार के लिए पाप-भक्षिणी विद्या का स्मरण करना चाहिए, जो इस प्रकार है
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