Book Title: Yogshastra
Author(s): Samdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
Publisher: Rushabhchandra Johari

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Page 337
________________ अष्टम प्रकाश १. श्रों नमो अरिहंताणं ह्राँ स्वाहा (अंगूठे में) नों नमो सिद्धाणं ह्रीं स्वाहा (तर्जनी में ) ३. नों नमों आयरियाणं ह्र स्वाहा ( मध्यमा में ) २. ४. ५. इस प्रकार तीन बार अंगुलियों में विन्यास करके और मस्तक के ऊपर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर के अन्तर भाग में स्थापित करके इस यन्त्र का चिन्तन करना चाहिए । अष्टाक्षरी विद्या नों नमो उवज्झायाणं ह्र" स्वाहा ( अनामिका में ) नों नमो लोए सव्वसाहूणं ह्रौं स्वाहा (कनिष्ठा में ) अष्टपत्रेऽम्बुजे ध्यायेदात्मानं दीप्त- तेजसम् । प्रणवाद्यस्य मन्त्रस्य वर्णान् पत्रेषु च क्रमात् ॥ ६६ ॥ पूर्वाशाभिमुखंः पूर्वमधिकृत्यादि - मण्डलम् । एकादश - शतान्यष्टाक्षरं मन्त्रं जपेत्ततः ॥६७॥ पूर्वाशानुक्रमादेव मुद्दिश्यान्य दलान्यपि । अष्टरात्रं जपेद्योगी सर्वप्रत्यूह शान्तये ॥ ६८ ॥ अष्टरात्रे व्यतिक्रान्ते कमलस्यास्य वर्त्तिनः । निरूपयति पत्रेषु वर्णानेताननुक्रमम् ||६६ ॥ भीषणाः सिंहमातङ्गरक्षः प्रभृतयः क्षणात् । शाम्यन्ति व्यन्तराश्चान्ये ध्यान- प्रत्यूह - हेतवः ॥७०॥ मन्त्रः प्रणव- पूर्वोऽयं फलमैहिकमिच्छुभिः । ध्येयः प्रणवहीनस्तु निर्वाणपद - कांक्षिभिः ॥ ७१ ॥ आठ पंखुड़ी वाले कमल में तेज से झिलमिलाती श्रात्मा का चिन्तन करना चाहिए और प्रवणादि मंत्र के अर्थात् 'नों नमो अरिहंताणं' इस पूर्वोक्त मंत्र के आठों वर्णों को अनुक्रम से प्राठों पत्रों पर स्थापित करना चाहिए । Jain Education International २४७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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