Book Title: Yogshastra
Author(s): Samdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
Publisher: Rushabhchandra Johari

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Page 321
________________ अष्टम- प्रकाश . .. पदस्थ-ध्यान यत्पदानि पवित्राणि समालम्ब्य विधीयते । तत्पदस्थं समाख्यातं ध्यानं सिद्धान्त-पारगैः । १॥ .. पवित्र मंत्राक्षर प्रादि पदों का अवलंबन करके जो ध्यान किया जाता है, उसे सिद्धान्त के पारगामी पुरुष 'पदस्थ-ध्यान' कहते हैं। तत्र षोडश-पत्राढ्ये नाभिकन्द-गतेऽम्बुजे। स्वरमालां यथापत्रं भ्रमन्ती परिचिन्तयेत् ।। २ ।। चतुर्विंशतिपत्रञ्च हृदि पद्म सकणिकम् । वर्णान् यथाक्रमं तत्र चिन्तयेत् पञ्चविंशतिम् ॥ ३ ॥ . . वक्त्राब्जेष्टदले वर्णाष्टकमन्यत्ततः स्मरेत् । ... ... संस्मरन् । मातृकामेवं स्यात् श्रुतज्ञानपारगः ॥ ४ ॥ साधक को नाभिकन्द पर स्थित सोलह पंखुड़ियों वाले प्रथम कमल के प्रत्येक पत्र पर सोलह स्वरों 'अ, आ, इ, ई', आदि की भ्रमण करती हुई पंक्ति का चिन्तन करना चाहिए। और हृदय में स्थित चौबीस पंखुड़ियों वाले कर्णिका सहित कमल में अनुक्रम से 'क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म'-इन व्यजनों का चिन्तन करना चाहिए । इनमें से चौबीस व्यंजनों को.चौबीस पंखुड़ियों में और 'म' को कणिका में रखकर चिन्तन करना चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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