Book Title: Yogshastra
Author(s): Samdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
Publisher: Rushabhchandra Johari
View full book text
________________
२३२
योग-शास्त्र ___तीसरे आठ पंखुड़ी वाले कमल की मुख में कल्पना करनी चाहिए। . उसमें शेष आठ व्यंजनों-'य, र, ल, व, श, ष, स, ह'-का चिन्तन करना चाहिए।
इस प्रकार इस मातृका का चिन्तन करने वाला योगी श्रुतज्ञान का पारगामी होता है। मातृका-ध्यान का फल
ध्यायतोऽनादिसंसिद्धान् वर्णानेतान् यथाविधि ।
नष्टादि-विषयं ज्ञानं ध्यातुरुत्पद्यते क्षणात् ॥ ५॥ अनादिकाल से स्वतः सिद्ध इन वर्गों का विधिपूर्वक ध्यान करने वाले ध्याता को थोड़े ही समय में नष्ट होने वाले पदार्थों-'गया, पाया, हुअा, हो रहा. होने वाला और जीवन एवं मरण' आदि, से सम्बन्धित ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। प्रकारान्तर से पदस्थ ध्यान
अथवा नाभिकन्दाधः पद्ममष्टदलं स्मरेत् । स्वरालिकेसरं रम्यं वर्गाष्टक-युतैर्दलैः ।। ६ ।। दलसन्धिषु सर्वेषु सिद्धस्तुति-विराजिते । दलानेषु समग्रेषु मायाप्रणव-पावितम् ।। ७ ।। तस्यान्तरन्तिमं वर्णमाद्य-वर्ण-पुरस्कृतम् । रेफाक्रान्तं कलाबिन्दुरम्यं प्रालेयनिर्मलम् ।। ८ ।। अहमित्यक्षरं प्राणप्रान्त-संस्पशि पावनम् । हृस्वं दीर्घ प्लुतं सूक्ष्ममतिसूक्ष्मं ततः परम् ।। ६ ।। ग्रन्थीन् विदारयन्नाभिकन्द-हृद्घण्टिकादिकान् । सुसूक्ष्मध्वनिना मध्यमार्गयायि स्मरेत्ततः ॥ १० ॥ अथ तस्यान्तरात्मानं प्लाव्यमानं विचिन्तयेत् । बिन्दु - तप्तकलानिर्यत्क्षीर - गौरामृतोमिभिः ।। ११ ।।
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386