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योग- शास्त्र
आठों पंखुड़ियों की सन्धियों में सिद्ध-स्तुति 'ह्रीं' को स्थापित करना चाहिए तथा पंखुड़ियों के अग्रभाग में 'ॐ ह्रीं' स्थापित करना चाहिए ।
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श्रर्ह" शब्द का पहले
उस कमल में प्रथम वर्ण 'अ' और अन्तिम वर्ण 'ह' को बर्फ के समान उज्ज्वल रेफ, कला और बिन्दु ("") से युक्त, स्थापित करना चाहिए । अर्थात् 'अर्ह" की स्थापना करनी चाहिए। यह 'अहं' मन में स्मरण . करने मात्र से आत्मा को पवित्र करने वाला है मन में ह्रस्व नाद से उच्चारण करना चाहिए । फिर दीर्घ, प्लुत, सूक्ष्म और फिर अतिसूक्ष्म नाद से उच्चारण करना चाहिए। तत्पश्चात् वह नाद नाभि, हृदय, और कंठ की घंटिकादि की गांठों को विदारण करता हुआ उन सब के बीच में होकर आगे चला जा रहा है - ऐसा चिन्तन करना चाहिए ।
तदनन्तर उस नाद के बिन्दु से दूध के समान उज्ज्वल अमृत की सराबोर हो रही है, ऐसा चिन्तन करना चाहिए ।
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तपी हुई कला में से निकलने वाले तरंगों से अन्तरात्मा प्लावित -
फिर अमृत के एक सरोवर की कल्पना करनी चाहिए । उस सरोवर से उत्पन्न हुए सोलह पांखुड़ी वाले कमल के अन्दर अपने आपको स्थापित करके, उन पंखुड़ियों में क्रम से सोलह विद्यादेवियों का चिन्तन करना चाहिए । फिर अपने आप को दीर्घकाल तक देदीप्यमान स्फटिक रत्न की ... भारी में से भरते हुए दूध के सदृश उज्ज्वल अमृत से सराबोर होते हुए चिन्तन करना चाहिए ।
के समान निर्मल अर्हन्त परमेष्ठी का यह ध्यान इतना प्रबल और प्रगाढ़
तत्पश्तात् इस मंत्रराज के अभिधेय - वाच्य और शुद्ध स्फटिक रत्न मस्तक में ध्यान करना चाहिए । होना चाहिए कि इसके चिन्तन
के कारण बार-बार 'सोऽहं सोऽहं' अर्थात् इस प्रकार की अन्तर्ध्वनि करता हुआ ध्याता निःशंक भाव से आत्मा और परमात्मा की एक
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रूपता का अनुभव करने लगे ।
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