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अष्टम प्रकाश
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ततः सुधा-सरः सूतषोडशाब्जदलोदरे । आत्मानं न्यस्य पत्रेषु विद्यादेवीश्च षोडश ।। १२ ।। स्फुट - स्फटिक - भृङ्गार - क्षरत्क्षीरसितामृतैः ।
आभिराप्लाव्यमानं स्वं चिरं चित्ते विचिन्तयेत् ।। १३ ।। अथास्य मन्त्रराजस्याभिधेयं परमेष्ठिनम् । अर्हन्तं मूर्धनि ध्यायेत् शुद्धस्फटिकनिर्मलम् ॥ १४ ॥ तद्ध्यानावेशतः सोऽहं सोऽहमित्यालपन् मुहुः । निःशङ्कमेकतां विद्यादात्मनः परमात्मना ।। १५ ।। ततो नीरागमद्वषममोहं सर्वदर्शिनम् । सुराच्यं समवसृतौ कुर्वाणं धर्मदेशनाम् ॥ १६ ॥ ध्यायन्नात्मानमेवेत्थमभिन्नं परमात्मना ।
लभते परमात्म-तत्त्वं ध्यानी निर्धू तकल्मषः ॥ १७ ॥ पदस्थ ध्यान की दूसरी विधि इस प्रकार है
नाभिकन्द के नीचे आठ पाँखुड़ी वाले एक कमल का चिन्तन करना चाहिए। उसकी अ, आ, आदि सोलह स्वरों से युक्त केसराओं की कल्पना करनी चाहिए।
कमल की आठ पंखुड़ियों में कमशः पाठ वर्गों की स्थापना करनी चाहिए, जो इस प्रकार हैं :
१. अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लू, ल, ए, ऐ, ओ, औ, अं, प्रः। २. क, ख, ग, घ, ङ । ३. च, छ, ज, झ, ब। ४. ट, ठ, ड, ढ, ण। ५. त, थ, द, ध, न । ६. प, फ, ब, भ, म । ७. य, र, ल, व। ८. श, ष, स, ह।
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