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समस्त प्राणी जगत के लिए तीनों काल और त्रि-लोक में सम्यक्त्व के समान कोई श्रेय नहीं है और मिथ्यात्व के समान कोई प्रश्रय
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... -प्राचार्य समन्तभद्र
.... , कषायों के उपशान्त होने पर ही आत्मा में मोक्ष-मार्ग को जानने की अभिलाषा-भावना, इच्छा जागृत होती है।
-श्रीमद् रायचन्द्र
अकुशल प्रशस्त मनोवृत्तियों का निरोध करके कुशल-प्रशस्त, श्रेयस्कर और कल्याणकारी वृत्तियों का विकास करना ही समाधिमार्ग है।
-तथागत बुद्ध
मोह और क्षोभ के अभाव को समभाव कहते हैं। और समभाव की साधना को जीवन में साकार रूप देना ही योग-साधना या मोक्षमार्ग है।
-मुनि समदर्शी
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