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योग-शास्त्र
साक्षात्कार होने लगता है, जो पहले कभी अनुभव में न आया हो। कभी-कभी दिव्य-गंध, दिव्य-रूप, दिव्य-रस, दिव्य-स्पर्श और दिव्य-नाव की अनुभूति होती है। किन्तु, उन्हें भी इन्द्रियों के सूक्ष्म विषय मानकर मन से बाहर धकेल देना चाहिए । ऐसा करने पर मन में अपूर्व शान्ति का अनुभव होगा। इस प्रकार बाह्य और आन्तरिक विषयों से विरक्त मन में ही धारणा की योग्यता आती है। धारणा की योग्यता प्राप्त हो जाने पर ही यथार्थ ध्यान हो सकता है।
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