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पंचम प्रकाश
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यदि स्कंध दृष्टिगोचर न हो तो पाठ दिन में, हृदय दिखाई न दे तो चार प्रहर में, मस्तक दिखाई न दे तो दो प्रहर में और पूरा का पूरा शरीर दिखाई न दे तो तत्काल ही मृत्यु होती है । उपसंहार
एवमाध्यात्मिकं कालं विनिश्चेतु प्रसंगतः ।
बाह्यस्यापि हि कालस्य निर्णयः परिभाषितः ।। २२४ ।। इस प्रकार प्राणायाम-पवन के अभ्यास से शारीरिक कालज्ञान का निर्णय करते हुए प्रसंगवश बाह्य निमित्तों से भी काल का निर्णय बताया गया है । इसका तात्पर्य यह है कि सूर्य-नाड़ी आदि की गति से भी मृत्यु के समय का ज्ञान किया जा सकता है और बाह्य निमित्तों एवं शकुन आदि को देखकर भी मृत्यु के समय को जाना जा सकता है। जय-पराजय निर्णय
को जेष्यति द्वयोर्युद्ध इति पृच्छत्यवस्थितः ।
जयः पूर्वस्य पूर्णे स्याद्रिक्ते स्यादितरस्य तु ॥ २२५ ।। दो विरोधी व्यक्तियों के युद्ध में किसकी विजय होगी ? इस प्रकार का प्रश्न करने पर, प्रश्न के समम यदि पूर्ण नाड़ी हो अर्थात् स्वाभाविक रूप से पूरक हो रहा हो-श्वास भीतर की ओर खिंच रहा हो तो जिसका नाम पहले लिया गया है, उसकी विजय होती है और यदि नाड़ी रिक्त हो अर्थात् वायु बाहर निकल रहा हो तो दूसरे की विजय होती है। रिक्त-पूर्ण का लक्षण
यत्यजेत् संचरन् वायुस्तद्रिक्तमभिधीयते । - संक्रमेद्यत्र तु स्थाने तत्पूर्ण कथितं बुधैः ॥ २२६ ॥ - चलते हुए चायु का बाहर निकालना 'रिक्त' कहलाता है और नासिका के स्थान में पवन भीतर प्रवेश करता हो तो उसे विद्वान् 'पूर्ण.
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