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पंचम प्रकाश
२०७ पूर्णा संजायते वामा नाडी हि वरुणेन चेत् ।
कार्याण्यारभ्यमाणानि तदा सिध्यन्त्यसंशयम् ॥ २३०॥ पहले कहे हुए चार मंडलों में से दूसरे वारुण मंडल से यदि वाम नाड़ी पूर्ण बह रही हो तो उस समय प्रारम्भ किए गए कार्य अवश्य ही सफल होते हैं।
जय-जीवित-लाभादि-कार्याणि निखिलान्यपि। .
निष्फलान्येव जायन्ते पवने दक्षिणास्थिते ॥ २३१॥ यदि वारुण मंडल के उदय के समय पवन दाहिनी नासिका में चल रहा हो तो जय, जीवन एवं लाभ आदि सम्बन्धी सर्व कार्य निष्फल ही होते हैं।
ज्ञानी बुध्ध्वानिलं सम्यक् पुष्पं हस्तात्प्रपातयेत्।
मृत-जीवित-विज्ञाने ततः कुर्वीत निश्चयम् ॥२३२॥ जीवन और मरण सम्बन्धी विज्ञान को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुष वायु को भली-भाँति जानकर और अपने हाथ से पुष्प नीचे गिराकर उसके द्वारा भी निश्चय कर सकते हैं।
त्वरितो वरुणे लाभश्चिरेण तु पुरन्दरे ।
जायते पवने स्वल्प-सिद्धोऽप्यग्नौ विनश्यति ॥ २३३ ।। • यदि प्रश्न करते समय उत्तरदाता को वरुण-मंडल का उदय हो तो उसका तत्काल लाभ होता है, ऐसा समझना चाहिए । पुरन्दर मंडल का उदय होने पर देर से लाभ होता है, पवन मंडल का उदय हो तो साधा'रण लाभ होता है और अग्नि मंडल का उदय हो तो सिद्ध कार्य का भी नाश हो जाता है, ऐसा समझना चाहिए।
आयाति वरुणे यातः, तत्रैवास्ते सुखं क्षिती।
प्रयाति पवनेऽन्यत्र, मृत इत्यनले वदेत् ॥ २३४ ॥ यदि किसी गांव या देश गए हुए मनुष्य के सम्बन्ध में वरुण मंडल १. विशता।
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