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योग-शास्त्र
कहते हैं । वायु का बाहर निकलना 'रिक्त' और नासिका के द्वारा भीतर प्रविष्ट होना 'पूर्ण' कहलाता है। स्वरोदय से शुभाशुभ-निर्णय
प्रश्नाऽऽदौ नाम चेद् ज्ञातुर्गाह्णात्यन्वातुरस्य तु। . स्यादिष्टस्य तदा सिद्धिविपर्यासे विपर्ययः ।।२२७॥ ___ यदि प्रश्नकर्ता प्रश्न करते समय पहले जानने वाले का अर्थात् जिससे प्रश्न किया जा रहा है, उसका नाम ले तो इष्ट सिद्धि होती है । : इसके विपरीत, पहले रोगी का और फिर जानने वाले का नाम ले तो' परिणाम भी विपरीत ही होता है । ___टिप्पण-इस प्रकार का प्रश्न अनजान में पूछा जाए तभी उसका सही फल मालूम हो सकता है। यदि कोई प्रश्नकर्ता उपयुक्त नियम को जानकर यदि जानकार का नाम पहले लेकर प्रश्न पूछे तो यह नहीं कहा जा सकता कि रोगी जीवित रहेगा ही। उसकी परीक्षा दूसरे उपायों से की जानी चाहिए। .
वाम-बाहुस्थिते दूते समनामाक्षरो जयेत् ।
दक्षिण-बाहुगे त्वाजौ विषमाक्षर-नामकः ॥ २२८ ॥ - युद्ध में किस पक्ष की जय होगी ? इस प्रकार प्रश्न करने वाला दूत यदि बांयीं ओर खड़ा हो और युद्ध करने वाले का नाम-दो, चार, छह आदि सम अक्षर का हो, तो उसकी विजय होगी और यदि प्रश्नकर्ता दाहिनी ओर खड़ा हो, तो विषम अक्षरों के नाम वाले की विजय होगी।
भूतादिभिP हीतानां दष्टानां वा भुजङ्गमैः।
विधिः पूर्वोक्त एवासौ विज्ञेयः खलु मान्त्रिकैः ॥ २२६ ॥ जो भूत आदि से पाविष्ट हों अथवा जो सर्प आदि से डंस लिये गये हों, ऐसे मनुष्यों के सम्बन्ध में भी मंत्रवेत्ताओं को उनके ठीक होने या न होने का निर्णय करने के लिए पूर्वोक्त विधि ही समझनी चाहिए।
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