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योग-शास्त्र
के उदय के समय प्रश्न किया जाए तो वह जल्दी ही लौट कर आने वाला है, पृथ्वी मंडल में प्रश्न किया जाए तो वह जहाँ गया है वहाँ सुखपूर्वक है, पवन मंडल में प्रश्न किया जाए तो वह वहाँ से अन्यत्र चला गया है, अग्निमंडल में प्रश्न किया जाए तो उसकी मृत्यु हो गई है, ऐसा फल समझना चाहिए ।
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दहने युद्ध - पृच्छायां युद्धभंगश्च दारुणः । मृत्युः सैन्य-विनाशो वा पवने जायते पुनः ॥ २३५ ॥ यदि अग्नि मंडल में युद्ध सम्बन्धी प्रश्न किया जाए तो महायुद्ध होगा और उसमें शत्रु की ओर से पराजय प्राप्त होगी, पवन मंडल में प्रश्न किया जाए तो जिसके विषय में प्रश्न क्रिया गया हो, उसकी मृत्यु होगी और सेना का विनाश होगा |
महेन्द्रे विजयो युद्धे वारुणे वाञ्छिताधिकः । रिपु-भंगेन सन्धिर्वा स्वसिद्धि परिसूचकः ।। २३६ ।।
यदि पृथ्वी मंडल में प्रश्न करे तो युद्ध में विजय प्राप्त होगी, वरुणमंडल में प्रश्न करे तो अभीष्ट से भी अधिक फल की प्राप्ति होगी अथवा शत्रु का मान भंग होकर अपनी सिद्धि को सूचित करने वाली संधि होगी ।
भौमे वर्षति पर्जन्यो वरुणे तु मनोमतम् । पवने दुर्दिनाम्भोदा वह्नौ वृष्टिः कियत्यपि ॥ २३७ ॥
यदि पृथ्वी मंडल में वर्षा सम्बन्धी प्रश्न किया जाए तो वर्षा होगी, वरुण मंडल में किया जाए तो मनचाही वर्षा होगी, पवन मंडल में किया जाए तो बादल होंगे, पर वर्षा नहीं होगी और यदि अग्नि मंडल में किया जाए तो मामूली वर्षा होगी, ऐसा फल समझना चाहिए ।
वरुणे शस्य - निष्पत्तिरतिश्लाघ्या पुरन्दरे । मध्यस्था पवने च स्यान्न स्वल्पाऽपि हुताशने ॥ २३८ ॥
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