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पंचम प्रकाश एक-द्वि-त्रि-चतुः पञ्च-चतुर्विशत्यहः क्षयात् ।
एकादशादिपञ्चाहान्यत्र शोध्यानि तद्यथा ॥ १६ ॥ ग्यारह से लेकर पन्द्रह दिन तक एक ही सूर्यनाड़ी में पवन चलता रहे, तो पूर्वकथित सात सौ बीस दिन में से पूर्वोक्त प्रकार से अनुक्रम से दो, तीन, चार, पाँच चौबीसी दिन कम कर लेने चाहिए। अन्थकार स्वयं इसका विवरण दे रहे हैं ।
एकादश-दिनान्यर्क-नाड्यां वहति मारुते । 'षण्णवत्यधिकाह्नानां षट् शतान्येव जीवति ।। ६७ ।। यदि पौष्ण-काल में सूर्यनाड़ी में ग्यारह दिनों तक वायु चलता रहे. तो मनुष्य ६६६ दिन जीवित रहता है।
तथैव द्वादशाहानि वायौ वहति जीवति ।
दिनानां षट्शतीमष्टचत्वारिंशत् समन्विताम् ॥ ६८ ।। यदि पूर्वोक्त रूप से बारह दिन पर्यन्त वायु एक ही नाड़ी में चलता रहे, तो मनुष्य ६४८ दिवस जीवित रहता है।
त्रयोदश-दिनान्यर्क-नाडिचारिणि मारुते । - जीवेत्पञ्चशतीमह्नां षट्सप्तति-दिनाधिकाम् ।। ६६ ।। यदि तेरह दिन तक सूर्य-नाड़ी में पवन चलता रहे, तो व्यक्ति ५७६ दिन तक ही जीवित रहता है।
चतुर्दश-दिनान्येवं प्रवाहिनि समीरणे ।
प्रशीत्यभ्यधिकां जीवेदह्नां शत चतुष्टयम् ।। १०० ।। यदि चौदह दिवस तक सूर्यनाड़ी में पवन चलता रहे, तो मनुष्य ४८० दिन तक ही जीवित रहता है। .. .... तथा पञ्चदशाहानि यावत् वहति मारुते।
जीवेत्षष्ठिदिनोपेतं दिवसानां शतत्रयम् ॥ १०१ ॥
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