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योग-शास्त्र
मस्तक से काल-ज्ञान
ब्रह्मद्वारे प्रसर्पन्तीं पञ्चाहं धूममालिकाम् ।
न चेत्पश्येत्तदा ज्ञेयो मृत्युः संवत्सरैस्त्रिभिः ।। १२८ ।। ब्रह्म द्वार-दसवें द्वार में फैलती हई धूम की श्रेणी यदि पाँच दिन तक दृष्टिगोचर न हो तो समझना चाहिए कि तीन वर्ष में मृत्यु होगी।
धूम की श्रेणी का ब्रह्मद्वार में प्रविष्ट होने का ज्ञान प्राप्त करने के लिए निष्णात गुरु की सहायता लेनी चाहिए। प्रकारान्तर से काल-ज्ञान
प्रतिपद्दिवसे कालचक्र-ज्ञानाय शौचवान् ।
आत्मनो दक्षिणं पाणि शुक्ल पक्ष प्रकल्पयेत् ।। १२६ ।। अधोमध्योर्ध्वपर्वाणि कनिष्ठांगुलिकानि तु । क्रमेण प्रतिपत् षष्ठयेकादशीः कल्पयेत्तिथीः ।। १३० ।। अवशेषांगुली - पर्वाण्यवशेष - तिथीस्तथा ।
पञ्चमी-दशमी-राकाः पर्वाण्यंगुष्ठगानि तु ।। १३१ ॥ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन पवित्र होकर कालचक्र को जानने के लिए अपने दाहिने हाथ को शुक्ल पक्ष के रूप में कल्पित करना चाहिए।
अपनी कनिष्ठा अंगूलि के निम्न, मध्यम और ऊपर के पर्व में अनुक्रम से प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि की कल्पना करनी चाहिए।
अंगूठे के निचले, मध्य के और ऊपर के पर्व में पंचमी, दशमी और पूर्णिमा की कल्पना करनी चाहिए तथा शेष अंगुलियों के पर्वो में शेष तिथियों की कल्पना करनी चाहिए । अर्थात् अनामिका अंगुलि के तीन पर्वो में दूज, तीज और चौथ की, मध्यमा के तीन पर्यों में सप्तमी,
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