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योग-शास्त्र रोहिणी शशभृल्लक्ष्म महापथयरुन्धतीम् ।
ध्रुवं च न यदा पश्येद्वर्षेण स्यात्तदा मृतिः' ।। १३६ ।। यदि दृष्टि निर्मल-साफ होने पर भी १. रोहिणी नक्षत्र, २. चन्द्रमा का चिह्न, ३. छाया-पथ-छायापुरुष, ४. अरुन्धती तारासप्तर्षि के समीप दिखाई देने वाला एक छोटा-सा तारा और ५. ध्रुव अर्थात् भ्रकुटि, यह पाँच या इनमें से एक भी दिखाई न दें, तो उसकी एक वर्ष में मृत्यु होती है।
स्वप्ने स्वं भक्ष्यमाणं श्वगृध्रकाकनिशाचरैः।
उह्यमानं खरोष्ट्राद्यैर्यदा पश्येत्तदा मृतिः ॥ १३७ ॥ यदि कोई व्यक्ति स्वप्न में कुत्ता, गीध, काक या अन्य निशाचर प्राणियों द्वारा अपने शरीर को भक्षण करते देखे, अथवा गधा, ऊँट, शूकर, कुत्ते आदि पर सवारी करे या इनके द्वारा अपने को घसीटकर ले जाता हुआ देखे तो उसकी एक वर्ष में मृत्यु होती है.।
१. इस विषय में ग्रन्थकार ने स्वोपज्ञ टीका में अन्य आचार्यों का मत प्रदर्शित करते हुए दो श्लोक उद्धृत किये हैं, वे इस प्रकार हैं
अरुन्धतीं ध्रुवं चैव, विष्णोस्त्रीणि पदानि च । क्षीणायुषो न पश्यन्ति, चतुर्थं मातृमण्डलैम् ॥१॥ अरुन्धती भवेज्जिह्वा, ध्रुवं नासाग्रमुच्यते ।
तारा विष्णुपदं प्रोक्तं ध्रुवः स्यान्मातृमण्डलम् ॥२॥ जिनकी आयु क्षीण हो चुकी होती है, वे अरुन्धती, ध्रुव, विष्णुपद और मातृमण्डल को नहीं देख सकते हैं।
यहाँ अरुन्धती का अर्थ जिह्वा, ध्रुव का अर्थ नासिका का अग्रभाग, विष्णुपद का अर्थ दूसरे के नेत्र की पुतली देखने पर दिखाई देने वाली अपनी पुतली और मातृमण्डल का अर्थ भ्रकुटी समझना चाहिए।
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