________________
पंचम प्रकाश
१८६ दोनों जानुनों पर दोनों हाथों की कोहनियाँ को स्थापित करके अपने हाथ के दोनों पंजे मस्तक पर स्थापित किए जाएं और ऐसा करने पर यदि बादल न होने पर भी दोनों हाथों के बीच में डोडे के सदृश छाया उत्पन्न होती है तो उसे निरन्तर देखते रहना चाहिए। यदि उस छाया में एक पत्र विकसित होता हरा दिखाई दे, तो समझ लेना चाहिए कि उसकी छह महीने के अन्त में उसी दिन मृत्यु होगी।
इन्द्रनीलसमच्छाया वक्रीभूता सहस्रशः । मुक्ताफलालङ्करणाः पन्नगाः सूक्ष्ममूर्तयः ।। १४६ ।। दिवा सम्मुखमायान्तो दृश्यन्ते व्योम्नि सन्निधौ ।
न दृश्यन्ते यदा ते तु षण्मास्यन्ते मृतिस्तदा ।। १५० ।। जब आकाश मेघमालानों-बादलों से रहित होता है, उस समय मनुष्य धूप में स्थित हो तो उसे इन्द्रनील-मणि के सदृश कान्ति वाले, टेढ़े-मेढ़े, हजारों मुक्ताओं के अलंकार वाले तथा सूक्ष्म प्राकृति के सर्प सन्मुख पाते हुए दिखाई देते हैं। किन्तु, जब वह सर्प दिखाई न दें तो उसे समझना चाहिए कि उसकी छह महीने में मृत्यु होगी।
स्वप्ने मुण्डितमभ्यक्तं रक्त-गन्ध-स्रगम्बरम् ।
पश्येद् याभ्यां खरे यान्तं स्वं योऽब्दार्धं स जीवति ।।१५१ __ जो मनुष्य स्वप्न में यह देखता है कि "मेरा मस्तक मुडा हुअा है, तेल की मालिश की हुई है, लाल रंग का पदार्थ शरीर पर लेपन किया हुआ है, गले में लाल रंग की माला पहनी हुई है, और लाल रंग के वस्त्र पहन कर, गधे पर चढ़कर दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ" तो उसकी छह महीने में मृत्यु होती है । . घण्टानादो रतान्ते चेदकस्मादनुभूयते ।
. . पञ्चता पञ्चमास्यन्ते तदा भवति निश्चितम् ॥ १५२ । यदि विषय-सेवन करने के पश्चात् अकस्मात् ही शरीर में घंटे के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org