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पंचम प्रकाश
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'यह स्तम्भ बहुत बढ़िया था, परन्तु जल्दी ही नष्ट हो जायगा ।' इत्यादि प्रकार की उपश्रुति 'प्रर्थान्तरापदेश्य' कहलाती है । इस उपश्रुति से अपनी श्रायु का अनुमान लगा लेना चाहिए । जितने दिनों में स्तम्भ टूटने की ध्वनि सुनाई दे, उतने ही दिनों में श्रायु की समाप्ति समझनी चाहिए ।
२. स्त्ररूप - उपश्रुति - इस प्रकार होती है - 'यह स्त्री इस स्थान से नहीं जाएगी । यह पुरुष यहाँ से जाने वाला नहीं है । हम उसे जाने नहीं देंगे और वह जाना भी नहीं चाहता है' या 'अमुक यहाँ से जाना चाहता है, मैं उसे भेज देने के लिए उत्सुक हूँ, अतः अब वह शीघ्र ही चला जाएगा।' इस उपश्रुति से भी आयु का निर्णय होता है । इसका अभिप्राय यह है कि यदि जाने की बात सुनाई देती है, तो समझना चाहिए कि आयु का अन्त निकट है और यदि न जाने या न जाने देने की ध्वनि सुनाई देती है, तो समझना चाहिए कि आयु का अन्त सन्निकट नहीं है ।
इस प्रकार कान खोल कर स्वयं सुनी हुई उपश्रुति के अनुसार कुशल पुरुष निर्णय कर सकता है कि उसकी प्रायु का अन्त सन्निकट है
दूर है।
शनैश्चर के प्रकार से काल - निर्णय
शनिः
ः स्याद्यत्र नक्षत्रे तद्दातव्यं मुखे ततः । चत्वारि दक्षिणे पाणौ त्रीणि त्रीणि च पादयोः ।। १६७ ।। चत्वारि वामहस्ते तु क्रमशः पंच वक्षसि । त्रीणि शीर्षे दृशो द्वे गुह्य एकं शनौ नरे ।। १६८ ॥ निमित्त-समये तत्र पतितं स्थापना क्रमात् जन्म नामऋक्षं वा गुह्यदेशे भवेद्यदि ।। १६६ ।। दृष्ट श्लिष्ट ग्रहैर्दुष्टः सौम्यंरप्रेक्षितायुतम् । सज्जस्यापि तदा मृत्युः का कथा रोगिणः पुनः ॥ २००॥
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