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योग-शास्त्र
___शनि-देव की पुरुष के समान आकृति बना लेना चाहिए। फिर निमित्त देखते समय जिस नक्षत्र में शनि हो, उसके मुख में वह नक्षत्र. स्थापित करना चाहिए। तत्पश्चात् क्रम से आने वाले चार नक्षत्र दाहिने हाथ में, तीन-तीन दोनों पैरों में, चार बाएं हाथ में, पाँच वक्षस्थल में, तीन मस्तक में, दो-दो दोनों नेत्रों में और एक गुह्य भाग : में स्थापित करना चाहिए।
निमित्त देखते समय, स्थापना के अनुक्रम से जन्म-नक्षत्र अथवा नाम-नक्षत्र यदि गुह्य भाग में आया हो और उस पर दुष्ट ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो या दुष्ट ग्रहों के साथ मिलाप होता हो और सौम्य ग्रहों की दृष्टि न पड़ती हो या उनसे मिलाप न होता हो, तो निरोगी होने पर भी उस मनुष्य की मृत्यु होती है। रोगी की तो बात ही क्या ? लग्न के अनुसार कालज्ञान
पृच्छायामथ लग्नास्ते चतुर्थदशमस्थिताः ।
ग्रहाः क्रूराः शशी पठाष्टमश्चेत् स्यात्तदा मृतिः ॥२०१।। आयु सम्बन्धी प्रश्न पूछते समय जो लग्न चल रहा हो वह उसी समय अस्त हो जाए और क्रूर ग्रह चौथे, सातवें या दसवें रहे हुए हों और चन्द्रमा छठा या पाठवाँ हो, तो उस पुरुष की मृत्यु होती है।
पृच्छायाः समये लग्नाधिपतिर्भवति ग्रहः ।
यदि वास्तमितो मृत्युः सज्जस्यापि तदा भवेत् ॥२०२॥ आयु सम्बन्धी प्रश्न पूछते समय यदि लग्नाधिपति मेषादि राशि में गुरु, मंगल, और शुक्रादि हो अथवा चालू लग्न का अधिपति ग्रह अस्त हो गया हो, तो नीरोग मनुष्य की भी मृत्यु होती है। - लग्नस्थश्चेच्छशी सौरिदिशौ नवमः कुजः ।
अष्टमोऽकस्तदा मृत्युः स्माच्चेन्न बलवान् गुरुः ।। २०३ ।। यदि प्रश्न करते समय लग्न में चन्द्रमा स्थिति हो, बारहवें शनैश्चर
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