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योग- शास्त्र
के प्रति आदर भाव न होना, ५. सामायिक ग्रहण करने या उसके समय का स्मरण न रहना, जैसे कि मैंने सामायिक की है अथवा नहीं ? १०. देशावकाशिक- व्रत के प्रतिचार
प्रेष्यप्रयोगानयने पुद्गलक्षेपणं तथा । शब्दरूपानुपातौ च व्रते देशावकाशिके ।। ११६ ॥
देशावकाशिक व्रत के पाँच अतिचार हैं - १. प्रेष्य प्रयोग — मर्यादित क्षेत्र से बाहर, प्रयोजन होने पर सेवक आदि को भेज देना, २. श्रानयनमर्यादित क्षेत्र से बाहर की वस्तु दूसरे से मँगवा लेना, ३. प्रद्गलक्षेपमर्यादित क्षेत्र के बाहर के मनुष्य का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कंकर आदि फेंकना, ४. शब्दानुपात - मर्यादित क्षेत्र से बाहर के मनुष्य को आवाज देकर बुला लेना, और ५. रूपानुपात — मर्यादित क्षेत्र से बाहर के प्रादमी को अपना चेहरा दिखलाना, जिससे वह उसके पास था जाए ।
टिप्पण --- इस व्रत का प्रयोजन तृष्णा को सीमित करना है । व्रती जब व्रत को भंग न करते हुए भी व्रत के प्रयोजन को भंग करने वाला कोई कार्य करता है, तो वह 'अतिचार' कहलाता है ।
११. पोषध-व्रत के प्रतिचार
उत्सर्गादानसंस्ताराननवेक्ष्याप्रमृज्य च ।
अनादरः स्मृत्यनुपस्थापनं चेति पोषधे ।। ११७ ।।
पोषध व्रत के पाँच प्रतिचार हैं - १. भूमि को बिना देखे और बिना प्रमार्जन किए मल-मूत्र प्रादि का उत्सर्ग- - त्याग करना । २. पाट - चौकी श्रादि वस्तुएँ बिना देखे और बिना प्रमार्जन किए रखना- उठाना। ३. बिना देखे बिना पूजे विस्तर-आसन बिछाना । ४. श्रादर न होना, और ५. पोषध करके भूल जाना ।
पोषध व्रत के प्रति
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