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योग- शास्त्र
उदेति पवनः पूर्वं शशिन्येष त्र्यहं ततः । संक्रामति त्र्यहं सूर्ये शशिन्येव पुनस्त्र्यिहम् ॥ ६८ ॥ वद्यावद् बृहत्पर्व क्रमेणानेन मारुतः । कृष्णपक्षे पुनः सूर्योदय - पूर्वमयं क्रमः ॥ ६६ ॥
शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा के दिन, सूर्योदय के प्रारम्भ के समय यत्नपूर्वक प्रशस्त या अप्रशस्त वायु के संचार को देखना चाहिए । प्रथम तीन दिन तक चन्द्र नाड़ी में पवन का बहना प्रारम्भ होगा अर्थात् प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया के दिन सूर्योदय के समय चन्द्र- नाड़ी में पवन बहेगा । तत्पश्चात् तीन दिन तक अर्थात् चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी के दिन सूर्योदय के समय सूर्य - नाड़ी में बहेगा । तदनन्तर फिर तीन दिन तक चन्द्र-नाड़ी में और फिर तीन दिन तक सूर्य - नाड़ी में, इस क्रम से पूर्णिमा तक पवन बहता रहेगा । कृष्ण पक्ष में पहले तीन दिन तक सूर्योदय के समय सूर्य - नाड़ी में, फिर तीन दिन चन्द्र नाड़ी में, इसी क्रम से तीन-तीन दिन के क्रम से अमावस्या तक बहेगा ।
टिप्पण- -- स्मरण रखना चाहिए कि यह नियम सारे दिन के लिए नहीं, सिर्फ सूर्योदय के समय के लिए है । उसके पश्चात् एक-एक घंटे में चन्द्र नाड़ी और सूर्य - नाड़ी बदलती रहती है । इस नियम में उलट-फेर होना अशुभ फल का सूचक है ।
क्रम विपर्यय का फल
त्रीन् पक्षानन्यथात्वेऽस्य मासषट्केन पञ्चता । पक्ष-द्वयं विपर्यासेऽभीष्टबन्धु - विपद् भवेत् ॥ ७० ॥
भवेत्तु दारुणो व्याधिरेकं पक्षं विपर्यये । द्वित्र्याद्यविपर्यासे कलहादिकमुद्दिशेत् ॥ ७१ ॥
पहले वायु के बहने का जो क्रम कहा गया है, यदि उसमें लगातार तीन पक्ष तक विपर्यास हो, अर्थात् चन्द्र नाड़ी के बदले सूर्य नाड़ी में
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