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योग-शास्त्र
जिस महीने में पाँच दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चलने से जितने वर्षों में मरण बतलाया है, उस महीने में दो, तीन या चार दिन तक ही यदि एक नाड़ी में वायु चलता रहे, तो उस वर्ष के उतने ही विभाग करके कम दिनों के अनुसार वर्ष के उतने ही विभाग कम कर देने चाहिए । जैसे—मार्गशीर्ष मास के प्रारम्भ में पाँच दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चलने से अठारह वर्षों में मरण बताया गया है। यदि इस मास में पाँच के बदले चार दिन तक ही एक नाड़ी में वायु चलता रहे, तो अठारह वर्ष का एक पाँचवा भाग अर्थात् तीन वर्ष, सात मास
और छह दिन कम करने पर चौदह वर्ष, चार मास और चौबीस दिन में मृत्यु होगी । इसका अभिप्राय यह निकला कि मार्गशीर्ष मास के प्रारम्भ में यदि चार दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चलता रहे, तो चौदह वर्ष, चार मास और चौबीस दिन में मृत्यु होगी। ___ अन्यत्र भी इसी तरह ही समझना चाहिए और ऋतु आदि के मास में भी यही नियम समझना चाहिए । काल-निर्णय
अथेदानी प्रवक्ष्यामि, किञ्चित्कालस्य निर्णयम् ।
सूर्य मार्ग समाश्रित्य, स च पौष्णेऽवगम्यते ।। ८६ ।। अब मैं काल-ज्ञान का निर्णय कहूंगा। काल-ज्ञान सूर्यमार्ग को प्राश्रित करके पौष्ण-काल में जाना जाता है। पौष्ण-काल
जन्मऋक्षगते चन्द्रे, समसप्तगते रवौ ।
पौष्णनामा भवेत्कालो, मृत्युनिर्णयकारणम् ॥ ८७ ॥ चन्द्रमा जन्म नक्षत्र में हो और सूर्य अपनी राशि से सातवीं राशि में हो तथा चन्द्रमा ने जितनी जन्म-राशि भोगी हो, उतनी ही सूर्य ने
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