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पंचम प्रकाश
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और सूर्य-नाड़ी के बदले चन्द्र-नाड़ी में पवन वहे, तो छह महीने में मृत्यु होती है। यदि दो पक्ष तक विपर्यास होता रहे, तो प्रिय बन्धु पर विपत्ति पाती है। एक पक्ष तक विपरीत पवन बहे, तो भयंकर व्याधि उत्पन्न होती है और यदि दो-तीन दिन तक विपरीत पवन बहे, तो कलह आदि अनिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
एक द्वि-त्रीण्यहोरात्राण्यर्क एव मरुद्वहन् ।
वर्षस्त्रिभिभ्यिामेकेनान्तायेन्दौ रुजे पुनः ।। ७२ ॥ ___ यदि किसी व्यक्ति के एक अहो-रात्रि अर्थात् दिन रात सूर्यनाड़ी में ही पवन चलता रहे, तो उसकी तीन वर्ष में मृत्यु हो जाती है । इसी प्रकार दो अहो-रात्रि सूर्यनाड़ी में पवन चले तो दो वर्ष में और तीन अहो-रात्रि चलता रहे तो एक वर्ष में मृत्यु हो जाती है ।
मासमेकं रवावेव वहन् वायुविनिदिशेत् ।
अहो-रात्रावधि मृत्यु शशांके तु धन-क्षयम् ॥ ७३ ।। ___ यदि किसी व्यक्ति के एक मास पर्यन्त लगातार सूर्य-नाड़ी में ही पवन चलता रहे, तो उसकी एक अहो-रात्रि में ही मृत्यु हो जाती है। यदि एक मास तक चन्द्र-नाड़ी में ही पवन चलता रहे, तो उसके धन का क्षय होता है। - वायुस्त्रिमार्गगः शंसेन्मध्याह्नात्परतो मृतिम् ।
दशाहं तु द्विमार्गस्थः संक्रान्तौ मरणं दिशेत् ।। ७४ ।। __इडा, पिंगला और सुषुम्णा, इन तीनों नाड़ियों में साथ-साथ पवन
चले तो मध्याह्न-दो प्रहर के पश्चात् मरण को सूचित करता है। . . इडा और पिंगला, दोनों नाड़ियों में साथ-साथ वायु बहे, तो दस दिन
में, और अकेली सुषुम्णा में लम्बे समय तक वायु बहे तो शीघ्र मरण ... होगा, ऐसा कहना चाहिए ।
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