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योग-शास्त्र
कोई पुरुष जमीन पर पैर रखकर सिंहासन पर बैठा हो और पीछे से उसका आसन हटा दिया जाए और उससे उसकी .जो आकृति बनती है, वह 'वीरासन' है, यह दूसरे प्राचार्यों का मत है। ४. पद्मासन
जङ्घाया मध्यभागे तु संश्लेषो यत्र जङ्घया।
पद्मासनमिति प्रोक्तं तदासनविचक्षणः ॥ १२६ ।। एक जांघ के साथ दूसरी जांघ को मध्यभाग में मिलाकर रखना 'पद्मासन' है, ऐसा आसनों के विशेषज्ञों का कथन है। ५. भद्रासन
सम्पुटीकृत्य मुष्काग्रे तलपादौ तथोपरि ।
पाणिकच्छपिकां कुर्यात् यत्र भद्रासनं तु तत् ।। १३० ।। दोनों पैरों के तलभाग वृषण-प्रदेश में-अंडकोषों की जगह एकत्र करके, उनके ऊपर दोनों हाथों की अंगुलियां एक-दूसरी अंगुली में डाल कर रखना, 'भद्रासन' कहलाता है। ६. दण्डासन
श्लिष्टांगुली श्लिष्टगुल्फो भूश्लिष्टोरू प्रसारयेत् ।
यत्रोपविश्य पादौ तद्दण्डासनमुदीरितम् ॥ १३१ ।। जमीन पर बैठकर इस प्रकार पैर फैलाना कि अंगुलियाँ, गुल्फ और जांघे जमीन के साथ लगी रहें, यह 'दंडासन' कहा गया है । ७-८. उत्कटिक और गोदोहासन
पुतपाणि - समायोगे प्राहुरुत्कटिकासनम् ।
पाणिभ्यां तु भुवस्त्यागे तत्स्याद् गोदोहिकासनम् ।।१३२ ।। जमीन से लगी हुई एड़ियों के साथ जब दोनों नितम्ब मिलते हैं, तब 'उत्कटिक-पासन' होता है और जब एड़ियाँ जमीन से लगी हुई नहीं होती, तब वह 'गोदुह-आसन' कहलाता है।
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