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योग-शास्त्र
समान क्रिया वाले मन और पवन-क्षीर-नीर की भाँति आपस में मिले
एकस्य नाशेऽन्यस्य स्यान्नाशो वृत्तौ च वर्तनम् ।।
ध्वस्तयोरिन्द्रियमति ध्वंसान्मोक्षश्च जायते ॥ ३ ॥ मन और पवन में से एक का नाश होने पर दूसरे का नाश होता हैं और एक की प्रवृत्ति होने पर दूसरे की प्रवृत्ति होती है। जब इन दोनों का नाश हो जाता है, तब इन्द्रिय और बुद्धि के व्यापार का भी नाश हो जाता है और इनके व्यापार का नाश हो जाने से मोक्ष लाभ होता है।
.. __ टिप्पण-जब जीव शरीर का त्याग करके चला जाता है, तब मन और पवन का नाश हो जाता है और इन्द्रिय तथा विचार की प्रवृत्ति भी बन्द हो जाती है। परन्तु, यहाँ उस प्रवृत्ति के बन्द होने से प्रयोजन नहीं है, क्योंकि उससे मोक्ष नहीं होता। आत्मिक उपयोग की पूर्ण 'जागृति होने पर मन और पवन की प्रवृत्ति बन्द हो जाए और उसके 'कलस्वरूप इन्द्रिय तथा बुद्धि की प्रवृत्ति बन्द हो जाए, तब मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्राणायाम का लक्षण और भेद
प्राणायामो गतिच्छेदः श्वासप्रश्वासयोर्मतः ।
रेचकः पूरकश्चैव कुम्भकश्चेति स त्रिधा ॥ ४ ॥ श्वास और उच्छवास की गति का निरोध करना 'प्राणायाम' कहलाता है । वह रेचक, पूरक और कुभकं के भेद से तीन प्रकार का है। अन्य प्राचार्यों का मत
प्रत्याहारस्तथा शान्त उत्तरश्चाधरस्तथा । एभिर्भेदैश्चतुर्भिस्तु सप्तधा कीर्त्यते परैः ।। ५ ।।
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