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योग-शास्त्र होने वाला, चारों ओर पवन से वेष्टित-पवन-बीज :य' अक्षर से घिरा हुआ और चंचल है। ४. प्राग्नेय-मंडल
ऊर्ध्वज्वालाञ्चितं भीमं त्रिकोणं स्वस्तिकान्वितम् ।
स्फुलिंगपिंगं तद्बीजं ज्ञेयमाग्नेय-मण्डलम् ।।४६।। ऊपर की ओर फैलती हुई ज्वालाओं से युक्त, भय उत्पन्न करने वाला, त्रिकोण, स्वस्तिक के चिह्न से युक्त, अग्नि के स्फुलिंग के समान वर्ण वाला और अग्नि-बीज रेफ '' से युक्त प्राग्नेय-मंडल कहा गया है ।
अभ्यासेन स्वसंवेद्यं स्यान्मण्डल-चतुष्टयम् ।
क्रमेण संचरन्नत्र वायुद्धे यश्चतुर्विधः ।। ४७॥.. पूर्वोक्त चारों मंडल स्वयं जाने जा सकते हैं, परन्तु उन्हें जानने के लिए अभ्यास करना चाहिए। यकायक उनका ज्ञान नहीं हो सकता। इन चार मंडलों में संचार करने वाली वायु को भी चार प्रकार का जानना चाहिए।
चार प्रकार का वायु १. पुरन्दर-वायु
नासिका-रन्ध्रमापूर्य पीतवर्णः शनैर्वहन् ।
कवोष्णोऽष्टांगुलः स्वच्छो भवेद्वायुः पुरन्दरः ॥ ४८ ।। पुरन्दर वायु-पृथ्वी तत्त्व का वर्ण पीला है, स्पर्श कुछ-कुछ उष्ण है और वह स्वच्छ होता है । वह नासिका के छिद्र को पूर कर धीरेधीरे आठ अंगुल बाहर तक बहता है । २. वरुण-वायु
धवलः शीतलोऽधस्तात्त्वरितत्वरितं वहन् । द्वादशांगुलमानश्च वायुर्वरुण उच्यते ॥ ४६ ।।
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