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पंचम प्रकाश
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वायु जब मंडल में प्रवेश करता है, तब उसे 'जीव' कहते हैं और जब वह मंडल में से बाहर निकलता है, तब उसे 'मृत्यु' कहते हैं । इसी कारण ज्ञानियों ने प्रवेश करते समय का फल 'शुभ' और निकलते समय के फल को 'अशुभ' कहा है।
टिप्पण-इसका तात्पर्य यह है कि जिस समय पूरक के रूप में वायु का भीतर प्रवेश हो रहा हो, उस समय कोई कार्य प्रारम्भ करे अथवा किसी कार्य के सम्बन्ध में प्रश्न करे, तो वह कार्य सिद्ध होता है, क्योंकि वह वायु 'जीव' है। इसके विपरीत, जब वायु रेचक के रूप में बाहर निकल रहा हो, तब कोई कार्य प्रारम्भ किया जाए या किसी कार्य की सिद्धि-प्रसिद्धि के विषय में प्रश्न किया जाए, तो वह कार्य सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि वह वायु ‘मृत्यु' है।
पथेन्दोरिन्द्र-वरुणौ विशन्तौ सर्वसिद्धिदौ । रविमार्गेण निर्यान्तौ प्रविशन्तौ च मध्यमौ ।। ५६ ।। दक्षिणेन विनिर्यान्तौ विनाशायानिलानलौ।
निःसरन्तौ विशन्तौ च मध्यमावितरेण तु ।। ६० ।। चन्द्रमार्ग से अर्थात् बांयी नासिका से प्रवेश करता हुआ पुरन्दर और वरुण वायु समस्त सिद्धियां प्रदान करता है तथा सूर्य-मार्ग से बाहर निकलते हुए एवं प्रवेश करते हुए दोनों वायु मध्यम फलदायक होते हैं।
टिप्पण-बांयी ओर का नासिकारन्ध्र 'चन्द्र-नाड़ी' और 'इडा-नाड़ी' कहलाता है तथा दाहिनी ओर का 'सूर्य-नाड़ी' और 'पिंगला-नाड़ी' कहलाता है। जिस समय चन्द्र-नाड़ी में पुरन्दर या वरुण-वायु प्रवेश करता है, यदि उस समय कोई कार्य प्रारम्भ किया जाए या किसी कार्य के विषय में प्रश्न किया जाए, तो वह कार्य सिद्ध होता है । जब यही दोनों वायु सूर्य-नाड़ी से प्रवेश कर रहे या निकल रहे हों, तब कार्य प्रारम्भ किया जाए या कार्य सम्बन्धी प्रश्न किया जाए, तो उस व्यक्ति को मध्यम फल की प्राप्ति होती है।
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