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पंचम प्रकाश
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उदान वायु का वर्ण लाल है । हृदय, कंठ, तालु, भ्रकुटि का मध्यभाग और मस्तक उसका स्थान है । उसे भी गमागम के प्रयोग से वश में करना - जीतना चाहिए ।
प्रयोग की विधि
स्थापयेत्तं हृदादिषु ।
नासाकर्षण - योगेन बलादुत्कृष्यमाणं च रुध्वा रुध्वा वशं नयेत् ॥ १६ ॥
नासिका के द्वारा बाहर से वायु को खींच कर उसे हृदय में स्थापित करना चाहिए । यदि वह वायु जबरदस्ती दूसरे स्थान में जाता हो, तो उसे बार-बार निरोध करके वश में करना चाहिए ।
टिप्पण - वायु को जीतने का यह उपाय प्रत्येक वायु के लिए लागू होता है । वायु के जो-जो निवास स्थान बतलाए हैं, वहाँ-वहाँ पहले पूरक-प्राणायाम करना चाहिए अर्थात् नासिका द्वारा बाहर के वायु को अन्दर खींचकर उसे उस उस स्थान पर रोकना चाहिए। ऐसा करने से खींचने और छोड़ने की दोनों क्रियाएँ बन्द हो जाएँगी और वह वायु उस स्थान पर नियत समय तक स्थिर रहेगा । यदि कभी वह वायु जोर मार कर दूसरे स्थान पर चला जाए, तो उसे बार-बार रोक कर और कुछ समय तक कुम्भक प्राणायाम करके नासिका के एक छिद्र द्वारा उसे धीरे-धीरे बाहर निकाल देना चाहिए । फिर उसी छिद्र द्वारा उसे भीतर खींच कर कुम्भक प्राणायाम करना चाहिए । ऐसा करने से वायु वशीभूत हो जाता है ।
५. व्यान वायु
सर्वत्वग्वृत्तिको व्यानः शककार्मुकसन्निभः । जेतव्यः कुम्भकाभ्यासात् संकोचप्रसृतिक्रमात् ।। २० ।। व्यान वायु का इन्द्रधनुष-सा वर्ण है। त्वचा के सर्व भागों में उसका निवास है । संकोच श्रौर प्रसार अर्थात् पूरक और रेचक
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