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योग-शास्त्र तेरहवें श्लोक में बतलाए हुए वायु के स्थान आदि पांच-पांच भेदों : में से यहाँ प्राण-वायु के स्थान, वर्ण और क्रिया-प्रयोग का प्रतिपादन किया गया है। अर्थ और बीज का वर्णन बाद में किया जाएगा। प्रयोग और धारण
नासादि-स्थान-योगेन पूरणारेचनान्मुहुः ।
गमागमप्रयोगः स्याद्धारणं कुम्भनात् पुनः ।। १५ । . नासिका आदि स्थानों में बार-बार वायु का पूरण और रेचन करने से गमागम प्रयोग होता है और उसका अवरोध-कुम्भक करने से धारण प्रयोग होता है। २. अपान वायु
अपानः कृष्णरुग्मन्यापृष्ठपृष्ठान्तपाणिगः ।
जेयः स्वस्थान-योगेन रेचनात्पूरणान्मुहुः ।। १६ ।। अपान-वायु का रंग काला है । गर्दन के पीछे की नाड़ी, पीठ, गुदा और एड़ी में उसका स्थान है। इन स्थानों में बार-बार रेचक, पूरक करके इसे जीतना चाहिए। ३. समान-वायु
शुक्लः समानो हृन्नाभिसर्वसन्धिष्ववस्थितः ।
जेयः स्वस्थान - योगेनासकृद्रेचनपूरणात् ॥ १७ ॥ समान-वायु का वर्ण श्वेत है । हृदय, नाभि और सब संधियों में उसका निवास स्थान है। इन स्थानों में बार-बार रेचक और पूरक करके उसे जीतना चाहिए। ४. उदान-वायु
रक्तो हृत्कण्ठ-तालु-भ्र-मध्यमूर्धनि च संस्थितः । उदानो वश्यतां नेयो गत्यागति - नियोगतः ।। १८ ।।
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