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पंचम प्रकाश
१५३ दूसरे प्राचार्यों की ऐसी मान्यता है कि पूर्वोक्त रेचक, पूरक और कुंभक के साथ प्रत्याहार, शान्त, उत्तर और अधर, यह चार भेद मिलाने से प्राणायाम सात प्रकार का होता है। १. रेचक-प्राणायाम
यः कोष्ठादतियत्नेन नासाब्रह्मपुराननैः ।
बहिः प्रक्षेपणं वायोः स रेचक इति स्मृतः ॥ ६ ॥ अत्यन्त प्रयत्न करके नासिका, ब्रह्मरन्ध्र और मुख के द्वारा कोष्ठ अर्थात् उदर में से वायु को बाहर निकालना 'रेचक-प्राणायाम' कहलाता है। २-३. पूरक और कु भक प्राणायाम
समाकृष्य यदापानात् पूरणं स तु पूरकः ।
नाभिपद्मे थिरीकृत्य रोधनं स तु कुम्भकः॥ ७ ॥ बाहर के पवन को खींचकर उसे अपान-गुदा द्वार पर्यन्त कोष्ठ में भर लेना 'पूरक-प्राणायाम' है और नाभि-कमल में स्थिर करके उसे रोक लेना 'कुंभक-प्राणायाम' कहलाता है। ४-५. प्रत्याहार और शान्त प्राणायाम . स्थानात्स्थानान्तरोत्कर्षः प्रत्याहारः प्रकीर्तितः ।
तालुनासाननद्वारेनिरोधः शान्त उच्यते। ८ ।। पवन को खींचकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना 'प्रत्याहार' कहलाता है। तालु, नासिका और मुख के द्वारों से वायु का निरोध कर देना 'शान्त' नामक प्राणायाम है।
टिप्पण-वायु को नाभि में से खींचकर हृदय में और हृदय से खींच कर नाभि में, इस प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाना 'प्रत्याहार-प्राणायाम' है । कुंभक में पवन नाभि-कमल में रोका जाता है
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