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चतुर्थ प्रकाश .
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टूटे हुए ध्यान को पुनः ध्यानान्तर के साथ जोड़ने के लिए-१. मैत्री, २. प्रमोद, ३. करुणा, और ४. मध्यस्थ्य, इन चार भावनाओं की आत्मा के साथ योजना करनी चाहिए। यह भावनाएँ रसायन की तरह ध्यान को पुष्ट करती हैं। १. मैत्री-भावना
मा कार्षीत्कोऽपि पापानि मा च भूत्कोऽपि दुःखितः । मुच्यतां जगदप्येषा मतिमंत्री निगद्यते ।। ११८ ॥
जगत् का कोई भी प्राणी पाप न करे, कोई भी प्राणी दुःख का भाजन न बने, समस्त प्राणी दुःख से मुक्त हो जाएँ, इस प्रकार का चिन्तन करना-मैत्री-भावना है। २. प्रमोद-भावना
अपास्ताशेष-दोषाणां, वस्तुतत्त्वावलोकिनाम् ।
गुणेषु पक्षपातोऽयं, सः प्रमोदः प्रकीर्तितः ।। ११६ ॥ जिन्होंने हिंसा आदि समस्त दोषों का त्याग कर दिया है और जो वस्तु के यथार्थ स्वरूप को देखने वाले हैं, अर्थात् जिन्हें सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र प्राप्त हो गया है, उन महापुरुषों के गुणों के प्रति आदरभाव होना, उनकी प्रशंसा करना, उनकी सेवा प्रादि करना-'प्रमोदभावना है। ३. करुणा-भावना
दीनेष्वार्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम् । . प्रतीकारपरा बुद्धिः कारुण्यमभिधीयते ।। १२० ।। .. दीन, दुखी, भयभीत और प्राणों की भीख चाहने वाले प्राणियों के दुख को दूर करने की भावना होना-'करुणा भावना' है।
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