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जिस धर्म-साधना के द्वारा अपवर्ग-मुक्ति की प्राप्ति हो, उसे 'योग' कहते हैं।
.. -प्राचार्य हरिभद्र समस्त प्रात्म शक्तियों का पूर्ण विकास कराने वाली क्रिया, साधना एवं प्राचार-परंपरा 'योग' है ।
-लार्ड एबेबरीने
जान तभी परिपक्य समझा जाता है, जबकि ज्ञान के अनुरूप आचरण किया जाए । असल में यह आचरण ही 'योग' है।
-पं० सुखलाल संघवी
सधना के लिए प्राचार के पहले ज्ञान आवश्यक है। ज्ञान के बिना कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती।
-भगवान महावीर
जिसमें योग-एकाग्रता नहीं है, वह योगी नहीं; ज्ञान-बन्धु है ।
-योगवासिष्ठ
योग का कलेवर-शरीर एकाग्रता है और उसकी प्रात्मा अहंत्वममत्व का त्याग है । जिसमें केवल एकाग्रता है, वह 'व्यवहारिक-योग' है
और जिसमें एकाग्रता के साथ अहंभाव का त्याग भी है, वह 'परमार्थयोग' है।
-पं० सुखलाल संघवी
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