________________
चतुर्थ प्रकाश
१२१ इन्द्रियों पर काबू पाए बिना कषायों को जीतने के लिए कोई समर्थ नहीं हो सकता। हेमन्त ऋतु का भयंकर शीत जाज्वल्यमान अग्नि के बिना नष्ट नहीं होता।
अदान्तैरिन्द्रिय - हयैश्चलेरपथगामिभिः।
प्राकृष्य नरकारण्ये जन्तुः सपदि नीयते ।। २५॥ इन्द्रिय रूपी चपल घोड़े जब नियंत्रण में नहीं रहते हैं तो कुमार्ग में चले जाते हैं । कुमार्ग में जाकर वे जीव को भी शीघ्र ही नरक रूपी' अरण्य में खींच ले जाते हैं । अतः इन्द्रियों पर विजय प्राप्त न करने वाला जीव नरकगामी होता है।
इन्द्रियविजितो. जन्तुः कषायैरभिभूयते।
वीरैः कृष्टेष्टकः पूर्वं वप्रः कैः कैर्न खण्ड्यते ॥ २६ ।। जो जीव इन्द्रियों के द्वारा पराजित हो जाता है, कषाय भी उसका पराभव करते हैं । यह स्वाभाविक ही है, क्योंकि वीर पुरुष जब किसी । भव्य-भवन की ईंटें खींच लेते हैं, तो बाद में उसे कौन खंडित नहीं करते ? फिर तो साधारण आदमी भी उसे नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं।
कुलघाताय पाताय बन्धाय वधाय च। . . अनिजितानि जायन्ते करणानि शरीरिणाम् ॥ २७ ॥
अविजित इन्द्रियाँ रावण की तरह मनुष्यों के कुल के विनाश का, सौदास की तरह पतन का, चण्डप्रद्योत की तरह बन्धन का, और पवनकेतु की तरह वध का कारण बनती हैं। इन्द्रियासक्ति का फल .
वशा-स्पर्श-सुख-स्वाद - प्रसारित - करः करी। . आलान - बन्धन - क्लेशमासादयति तत्क्षणात् ॥ २८ ॥
• पयस्यगाधे विचरन् गिलन् गलगतामिषम् । . मैनिकस्य करे दीनो मीनः पतति निश्चितम् ॥ २६ ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org