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योग-शास्त्र
- बिष, शस्त्र, हल, यंत्र, लोहा और हड़ताल प्रादि प्राण घातक
वस्तुओं का व्यापार करना 'विष-वाणिज्य' कहलाता है। ११. यंत्रपीडन-कर्म
तिलेक्षु-सर्षपैरण्ड-जलयन्त्रादि-पीडनम् ।
दलतैलस्य च कृतिर्यन्त्रपीडा प्रकीत्तिता ।। ११० ॥ तिल, ईख, सरसों और एरंड आदि को पीलने का तथा अरहट आदि चलाने का धंधा करना, तिलादि देकर तेल लेने का धंधा करना और इस प्रकार के यंत्रों को बनाकर आजीविका चलाना 'यंत्रपीडन-कर्म' कहलाता है। १२. निलांछन-कर्म
नासोवेधोऽङ्कनं मुष्कच्छेदनं पृष्ठ-गालनम् ।
कर्ण-कम्बल-विच्छेदो निर्लाञ्छनमुदीरितम् ।। १११ ॥ . जानवरों की नाक बींधना-नत्थी करना, प्रांकना-डाम लगाना, बधिया-खस्सी करना, ऊँट आदि की पीठ गालना और कान तथा गल-कंबल का छेदन करना 'निलांछन-कर्म' कहा गया है। १३. असती-पोषण-कर्म
सारिका-शुक-मार्जार-श्व-कुकुट-कलापिनाम् ।
पोषो दास्याश्च वित्तार्थमसती-पोषणं विदुः ।। ११२ ॥ __ मैना, तोता, बिल्ली, कुत्ता, मुर्गा एवं मयूर को पालना, दासी का पोषण करना-किसी को दास-दासी बनाकर रखना और पैसा कमाने के लिए दुश्शील स्त्रियों को रखना 'असती-पोषण-कर्म' कहलाता है। . १४-१५. दवदान तथा सर-शोष्ण-कर्म
व्यसनात् पुण्यबुद्धया वा, दवदानं भवेद् द्विधा । सरःशोषः सरःसिन्धु-ह्नदादेरम्बुसंप्लवः ॥ ११३ ।।
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