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तृतीय प्रकाश
तालाब, कूप, बावड़ी प्रादि खुदवाने, और पत्थर फोड़ने गढ़ने, आदि पृथ्वीकाय की प्रचुर हिंसा रूप कर्मों से भाजीविका चलाना 'स्फोटजीविका' है ।
६. दन्त-वाणिज्य
दन्त-केश-नखास्थि-त्वग्-रोम्णो ग्रहणमाकरे ।
सांगस्य वणिज्यार्थं, दन्त-वाणिज्यमुच्यते ॥ १०६ ॥
हाथी के दांत, चमरी गाय आदि के बाल, उलूक आदि के नाखून, शंख आदि की स्थि, शेर चीता आदि के चर्म और हंस आदि के रोम और अन्य सजीवों के अंगों को, उनके उत्पत्ति स्थान में जाकर लेना या पेशगी द्रव्य देकर खरीदना दन्त-वाणिज्य' कहलाता है ।
७.
लाक्षा-वारिणज्य
लाक्षा - मनःशिला- नीली धातकी-टंकणादिनः । विक्रयः पापसदनं लाक्षा - वाणिज्यमुच्यते ॥ लाख, मैनसिल, नील, धातकी के फूल, छाल प्रादि, प्रादि पाप के कारण हैं, अतः उनका व्यापार भी पाप का यह 'लाक्षावाणिज्य' कर्मादान कहलाता है ।
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मक्खन, चर्बी, मधु है और द्विपद एवं चतुष्पद अर्थात् धंधा करना 'केश - वाणिज्य' कहलाता है । १०. विष वाणिज्य
रस-केश वाणिज्य
नवनीत - वसा- क्षौद्र मद्य प्रभृति - विक्रयः । द्विपाच्चतुष्पाद्-विक्रयो वाणिज्यं रस- केशयोः ॥ १०८ ॥ और मद्य प्रादि बेचना 'रस- वाणिज्य' कहलाता पशु-पक्षी आदि का विक्रय करने का
१०७ ॥
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टंकण खार
कारण है ।
विषास्त्र - हल - यंत्रायो - हरितालादि-वस्तुनः । विक्रयो जीवितघ्नस्य, विष वाणिज्यमुच्यते ॥ १०६ ॥
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