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योग-शास्त्र
शरीर नारी के मन में विकार भाव जगाने का साधन बन सकता है
और वह (पुरुष का शरीर) भी स्त्री के शरीर की तरह मल-मूत्र एवं । विष्ठा से भरा हुआ है, निस्सार है, मांस और हड्डियों का पिञ्जर है । स्त्री-शरीर के वर्णन में दी गई समस्त बातें पुरुष-शरीर में भी घटित होती हैं । अतः प्रस्तुत में स्त्री-शरीर की निस्सारता का वर्णन करने का उद्देश्य स्त्री की निन्दा करना नहीं, बल्कि विकारों की निन्दा करना है, उनकी निस्सारता को बताना है । क्योंकि, स्त्री भी पुरुष की तरह मुक्ति को प्राप्त कर सकती है। अतः उसकी निन्दा करना उचित नहीं कहा जा सकता है।
संकल्पयोनिनानेन, हहा विश्वं विडम्बितम् ।
तदुत्खनामि संकल्पं, मूलमस्येति चिन्तयेत् ॥ १३५ ॥ ___ निद्रा भंग होने के पश्चात् श्रावक को यह भी विचार करना चाहिए कि संकल्प-विकल्प से उत्पन्न होने वाले इस काम ने सारे विश्व की बिडम्बना कर रखी है। अतः मैं विषय-विकार की जड़-संकल्पविकल्प को ही उखाड़ फैकुंगा।
यो यः स्याद्बाधको दोषस्तस्य तस्य प्रतिक्रियाम्। चिन्तयेद्दोषमुक्तेषु, प्रमोदं यतिषु व्रजन् ॥१३६॥ जिस व्यक्ति को अपने जीवन में जो दोष दिखाई दे, उसे उस दोष से मुक्त मुनियों पर प्रमोद भाव धारण करते हुए उस दोष से मुक्त होने का विचार करना चाहिए । तात्पर्य यह है कि जो रोग हो, उसी के इलाज का विचार करना उचित है। जिसमें राग की अधिकता हो उसे वैराग्य का, क्रोध अधिक हो तो क्षमा का एवं मान अधिक होने पर नम्रता का विचार करना लाभप्रद होता है ।
दुःस्थां भवस्थिति स्थेम्ना सर्वजीवेषु चिन्तयन् । निसर्गसुखसगं तेष्वपवर्ग विमार्गयेत् ॥१३७॥
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