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जीवन-रेखा
पहरा देते समय असावधानी के कारण वे खान (Mine ) में गिर पड़े. और अपने हाथ की नंगी तलवार से उनके पैर में गहरा घाव पड़ गया । उन्हें अस्पताल में दाखिल कर दिया । उस समय माताजी गर्भवती थीं । अतः उन्हें किशनगढ़ भेज दिया और १०-१२ दिन बाद मेरा जन्म हुआ और जन्म के सात दिन बाद ही माताजी का देहान्त हो गया । अभी तक पिताजी के अपने एवं भाइयों के २३ पुत्रों के वियोग के आँसू सूख ही नहीं पाए थे कि उन पर यह वज्रपात हो गया । इस समय चार व्यक्ति उन्हें अहमदाबाद के अस्पताल से लेकर घर पर आए । वहाँ पर आते ही देखा तो घर का ताला टूटा हुआ था और रात-दिन खून-पसीना एक करके जो पैसा कमाया था, वह सब चोर ले गए थे । उनके पास कुछ भी नहीं बचा था। खैर, एक व्यक्ति से पचास रुपए उधार लेकर वे किशनगढ़ पहुँचे । परन्तु जब तक वे पहुँचे, तब तक माताजी का अग्निसंस्कार हो चुका था । सन्तोषमय जीवन
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मेरी माताजी के देहान्त के
बाद परिजनों ने उन्हें दूसरा विवाह
।
परन्तु वे
अब पुनर्विवाह करने के पक्ष
करने के लिए बहुत जोर दिया में नहीं थे । वे अपना जीवन शान्ति एवं
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स्वतंत्रता के साथ बिताना चाहते थे । अतः उन्होंने विवाह करने से इन्कार कर दिया और सीधासादा एवं त्याग-निष्ठ जीवन बिताने लगे । उन्होंने दूध, दही, घी, तेल, मिष्ठान, नमक और सब्जी आदि के त्याग कर दिए। आपने सात वर्ष तक बिना नमक मिर्च की उड़द की दाल और जौ की रूखी रोटी खाई । गृहस्थ जीवन में भी आप त्याग-विराग के साथ रहने लगे । आपने रसनेन्द्रिय पर विजय प्राप्त कर ली थी ।
पूर्व साहस
जब मैं पाँच वर्ष की थी, तब मेरे पिताजी एक दिन मुझे ननिहाल ले जा रहे थे। रास्ते में एक दिन के लिए मौसीजी के घर पर ठहरे ।
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