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तृतीय प्रकाश उपसंहार
सद्यः संमूर्छितानन्त-जन्तु सन्तान-दूषितं ।
नरकाध्वनि पाथेयं कोऽश्नीयात् पिशितं सुधीः ॥ ३३ ॥ प्राणियों को मारने के बाद तत्काल ही उत्पन्न हो जाने वाले अनेक जंतुओं के समूह से दूषित हो जाने वाला और नरक के मार्ग में पाथेय तुल्य मांस का कौन बुद्धिमान् भक्षण करेगा ? मक्खन भक्षण में दोष
. अंतर्मुहूर्तात्परतः सुसूक्ष्मा जंतुराशयः । __ यत्र मूर्छन्ति तन्नाद्यं नवनीतं विवेकिभिः ।। ३४ ॥ ___ मक्खन को छाछ में से निकालने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में ही अनेकों सूक्ष्म जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं। अतः विवेकी पुरुषों को मक्खन नहीं खाना चाहिए।
एकस्यापि हि जीवस्य हिंसने किमघं भवेत् ।
जंतु-जातमयं तत्को नवनीतं निषेवते ॥ ३५ ॥ एक जीव को मारने में ही महान् पाप है, तो जन्तुओं के समूह से भरपूर मक्खन का कौन भला आदमी भक्षण करेगा ? दयावान् पुरुष मक्खन का भक्षण नहीं करता है । मधु-भक्षण
अनेक - जंतु - संघात - निघातनसमुद्भवम् ।
- जुगुप्सनीयं लालावत् कः स्वादयति माक्षिकं ।। ३६ ॥ · अनेक जन्तुओं के समुदायों के नाश से उत्पन्न हुए और जुगुप्सनीय लार वाले मधु का प्रास्वादन नहीं करना चाहिए । यथाशक्य श्रावक को मधु का त्याग करना चाहिए ।
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