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योग-शास्त्र
४. प्रमाद-पाचरण
कुतूहलाद् गीत-नृत्य-नाटकादिनिरीक्षणम् । काम-शास्त्रप्रसक्तिश्च, इत-मद्यादिसेवनम् ।। ७८ ।। जलक्रीडाऽऽन्दोलनादिविनोदो, जन्तुयोधनम् । रिपोः सुतादिना वैरं, भक्तस्त्रीदेशराटकथाः ।। ७६ ।। रोगमार्गश्रमौ मुक्त्वा,स्वापश्चसकलां निशाम्।
एवमादि परिहरेत् प्रमादाचरणं सुधीः ॥ ८० ॥ कुतूहल से गीत, नृत्य, नाटक आदि देखना, काम-शास्त्र में आसक्ति रखना, जूया और मद्य आदि का सेवन करना, जल-क्रीड़ा करना, हिंडोला-झूला झूलना आदि विनोद करना, सांड आदि जानवरों को लड़ाना, अपने शत्रु के पुत्र आदि के प्रति वैर-भाव रखना या उससे बदला लेना, भोजन सम्बन्धी, स्त्री सम्बन्धी, देश सम्बन्धी, और राजा सम्बन्धी निरर्थक वार्तालाप करना, रोग या थकावट न होने पर भी रात भर सोते पड़े रहना आदि-आदि प्रमादाचरणों का बुद्धिमान् पुरुष को त्याग कर देना चाहिए।
विलास-हासनिष्ठ्यूत-निद्रा-कलह-दुष्कथाः ।।
जिनेन्द्रभवनस्यान्तराहारं च चतुर्विधम् ।। ८१ ।। ___धर्म-स्थान के अन्दर विलास-कामचेष्टा करना, कहकहा लगाकर हँसना, थूकना, नींद लेना, कलह करना, अभद्र बातें करने और प्रशन, पान, खाद्य, स्वाद्य यह चार प्रकार का आहार करने का भी त्याग करे । सामायिक स्वरूप
त्यक्तात-रौद्रध्यानस्य, त्यक्तसावध कर्मणः ।
मुहूर्त समता या तां, विदुः सामायिक-व्रतम् ॥ २२ ॥ प्रार्तध्यान और रौद्रध्यान का त्याग करके तथा पापमय कार्यों का त्याग करके एक मुहूर्त पर्यन्त समभाव में रहना 'सामायिक व्रत' कहलाता है।
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