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तृतीय प्रकाश
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बछड़ों को चराने वाला संगम नामक ग्वाला मुनिदान के प्रभाव से आश्चर्यजनक सम्पत्ति का अधिकारी बन गया। अतिचार त्याग
व्रतानि सातिचाराणि, सुकृताय भवन्ति न ।
अतिचारास्ततो हेयाः पञ्च पञ्च व्रते व्रते ॥ ८६ ॥ जिस आचार से स्वीकृत व्रत आंशिक रूप से खंडित होता है, वह 'अतिचार' कहलाता है। अतिचार युक्त व्रत कल्याण करने वाले नहीं होते । अतः प्रत्येक व्रत के जो पाँच-पाँच अतिचार हैं, उनका त्याग करना चाहिए। १. अहिंसा-व्रत के अतिचार
क्रोधाद् बन्ध छविच्छेदोऽधिकभाराधिरोपणम् ।
प्रहारोऽन्नादिरोधश्चाहिंसायां परिकीर्तिताः ॥ १० ॥ १. बन्ध-तीव्र क्रोधसे प्रेरित होकर, किसीके मरने की भी परवाह न करके मनुष्य या पशु आदि को बाँधना, २. चमड़ी का छेदन करना, ३. जिसकी जितनी भार उठाने की शक्ति है, उससे अधिक भार लादना या काम लेना, ४. मर्म-स्थल पर प्रहार करना, और ५. जिसका भोजनपानी अपने अधिकार में है, उसे समय पर भोजन-पानी न देना, ये
अहिंसा व्रत के पाँच अतिचार हैं। : २. सत्य-व्रत के अतिचार
मिथ्योपदेशः सहसाऽभ्याख्यानं गुह्यभाषणम् ।
विश्वस्तमन्त्रभेदश्च, कूटलेखश्च सूनृते ।। ६१ ॥ · सत्य-व्रत के पाँच अतिचार यह हैं-१. दूसरों को दुःख उपजाने वाला पापजनक उपदेश देना, २. विचार किए बिना ही किसी पर दोषारोपण करना, ३. किसी की गुह्य बात जानकर प्रकट कर देना,
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