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योग-शास्त्र
४. अपने पर विश्वास रखने वाले मित्र आदि की गुप्त बात प्रकट कर देना, और ५. झूठे लेख-पत्र-बहीखाता आदि लिखना। ३. अस्तेय-व्रत के अतिचार
स्तेनानुज्ञा तदानीतादानं द्विड्राज्यलङ घनम् ।।
प्रतिरूपक्रिया मानान्यत्वं चास्तेयसंश्रिताः ।। ६२ ।। अचौर्यव्रत के पाँच अतिचार यह हैं—१. चोर को चोरी करने की प्रेरणा करना, २. चोरी का माल खरीदना, ३. व्यापार के निमित्त विरोधी-शत्रु राजा के निषिद्ध प्रदेश में जाना, ४. मिलावट करके वस्तु का विक्रय करना, ५. झूठे माप-तोल रखना-देने के लिए छोटे और लेने के लिए बड़े नापने-तोलने के उपकरण रखना। ४. ब्रह्मचर्य-व्रत के अतिचार
इत्वरात्तागमोऽनात्तागतिरन्य - विवाहनम् ।
मदनात्याग्रहोऽनङ्गक्रीडा च ब्रह्मणि स्मृताः ॥ ६३ ॥ ब्रह्मचर्य व्रत के पाँच अतिचार कहे गए हैं-१. भाड़ा देकर, थोड़े समय के लिए अपनी स्त्री मान कर वेश्या के साथ गमन करना, २. अपरिगृहीता–वेश्या, कुलटा आदि के साथ गमन करना, ३. अपने पुत्र-पुत्री आदि के सिवाय, कन्यादान प्रादि के फल की कामना से दूसरों का विवाह कराना, ४. काम-भोग में अत्यन्त आसक्ति रखना, और ५. काम-भोग के अंगों के अतिरिक्त अन्य अंगों से विषय सेवन करनाजैसे हस्तकर्म आदि करना।
टिप्पण-उपर्युक्त पाँच अतिचारों में से पहले और दूसरे अतिचार की व्याख्या अनेक प्रकार से की जाती है। ग्रन्थ कर्ता ने इसका स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि जब कोई पुरुष भाड़ा देकर वेश्या को अपनी ही स्त्री समझ लेता है तब उसका सेवन अतिचार समझना चाहिए। क्योंकि वह उस समय अपनी समझ से परस्त्री का नहीं, किन्तु स्वस्त्री का ही
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