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तृतीय प्रकाश
८७ अन्य शपथों-प्रतिज्ञाओं की उपेक्षा करके लक्ष्मण की पत्नी वनमाला ने लक्ष्मण को रात्रि-भोजन का परित्याग करवाया था। मतः रात्रि भोजन का पाप महापाप है। रात्रि-भोजन-त्याग का फल
करोति विरति धन्यो, यः सदा निशि भोजनात् ।
सोर्द्ध पुरुषायुष्कस्य, स्यादवश्यमुपोषितः ॥ ६६ ॥ जो पुरुष रात्रि-भोजन का परित्याग कर देता है, वह धन्य है । निस्सन्देह उसका आधा जीवन उपवास में ही व्यतीत होता है ।
रजनी भोजनत्यागे, ये गुणाः परितोऽपि तान् ।
न सर्वज्ञाहते कश्चिदपरो वक्तुमीश्वरः ।। ७० ॥ रात्रि-भोजन का त्याग करने पर जो लाभ होते हैं, उन्हें सर्वज्ञ के सिवाय दूसरा कोई भी कहने में समर्थ नहीं है । द्विदल-भोजन का त्याग
ग्राम - गोरस - संपृक्त - द्विदलादिषु जन्तवः ।
दृष्टाः केवलिभिः सूक्ष्मास्तस्मात्तानि विवर्जयेत् ।। ७१ ।। कच्चे गोरस-दूध, दही, छाछ के साथ मिले हुए द्विदल-मूग, : उड़द, मोंठ, चना, अरहर, चँवला आदि की पकोड़ी में केवल-ज्ञानियों
ने सूक्ष्म जन्तुओं की उत्पत्ति देखी है। अतः उनके खाने का त्याग करना चाहिए।
टिप्पण- जिस धान्य को दलने पर बराबरी के दो भाग हो जाते हैं, वह 'द्विदल' कहलाता है। द्विदल के साथ कच्चे गोरस का संयोग होने पर अनन्त सूक्ष्म जन्तुओं की उत्पत्ति हो जाती है। यह विषय तर्क-गम्य न होने पर भी मान्य है, क्योंकि केवल-ज्ञानियों ने अतीन्द्रिय ज्ञान से जानकर इसका कथन किया है।
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