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योग-शास्त्र
टिप्पण-कई लोग रात्रि-भोजन न करते हुए भी. प्रतिज्ञापूर्वक रात्रि-भोजन के त्यागी नहीं होते। ऐसे लोग अवसर आने पर फिसल' भी सकते हैं और समय आने पर रात्रि में भी भोजन कर लेते हैं। उनके लिए यहाँ प्रतिज्ञा की आवश्यकता का प्रतिपादन किया गया है। प्रतिज्ञा स्वेच्छापूर्वक स्वीकृत बन्धन है, जिससे मानसिक दुर्बलता दूर हो जाती है और संकल्प में दृढ़ता आती है। अतः रात्रि-भोजन न करने वालों को भी उसका विधिवत् प्रत्याख्यान करना चाहिए। ऐसा किए बिना उन्हें रात्रि-भोजन त्याग का पूरा फल प्राप्त नहीं होता।
ये वासरं परित्यज्य, रजन्यामेव भुञ्जते ।
ते परित्यज्य माणिक्य, काचमाददते जडाः ॥ ६५ ।। . . जो दिन को छोड़कर रात्रि में ही भोजन करते हैं, वे जड़ मनुष्य मानो माणिक-रत्न का त्याग करके कांच को ग्रहण करते हैं।
वासरे सति ये श्रेयस्काम्यया निशि भुञ्जते ।
ते वपन्त्यूषर-क्षेत्रे, शालीन् सत्याप पल्वले ॥ ६६ ॥ खाने के लिए दिन मौजूद है, फिर भी लोग कल्याण की कामना से रात्रि में भोजन करते हैं, वे मानो पल्वल-पानी से भरे हुए खेत को छोड़कर ऊसर भूमि में धान बोते हैं। रात्रि भोजन का फल
उलूक - काक - मार्जार - गृध्र- शम्बर - शूकराः ।
अहि-वृश्चिक-गोधाश्च, जायन्ते रात्रिभोजनात् ।। ६७ ।। रात्रि भोजन करने से मनुष्य मर कर उल्लू, काक, बिल्ली, गिद्ध, सम्बर, शूकर, सर्प, बिच्छू और गोह आदि अधम गिने जाने वाले तिर्यञ्चों के रूप में उत्पन्न होते हैं।
श्रूयते ह्यन्यशपथाननादृत्यैव लक्ष्मणः । निशाभोजनशपथं, कारितो वनमालया ।। ६८ ॥
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