________________
८२
योग-शास्त्र अनन्तकायों को मिथ्यादृष्टि नहीं जानते हैं, क्योंकि वे लोग वनस्पति में जीव ही नहीं मानते। अज्ञात फल वर्जन
स्वयं परेण वा ज्ञातं फलमद्याद्विशारदः ।
निषिद्ध विषफले वा मा भूदस्य प्रवर्तनम् ॥ ४७ ॥ बुद्धिमान् पुरुष उसी फल का भक्षण करे जिसे वह स्वयं जानता हो या दूसरा कोई जानता हो, जिससे निषिद्ध या विषैला फल खाने में न . आए। क्योंकि, निषिद्ध फल खाने से व्रतभंग होता है और विषाक्त फल खाने से प्राण हानि हो सकती है । रात्रि-भोजन निषेध
अन्नं प्रेतपिशाचाद्यैः, सञ्चरद्भिनिरंकुशैः ।
उच्छिष्टं क्रियते यत्र, तत्र नाद्यादिनात्यये ।' ४८ ॥ रात्रि के समय स्वच्छन्द विचरण करने वाले प्रेत और पिशाच आदि अन्न को जूठा कर देते हैं, अतः सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
घोरांधकाररुद्धाक्षः, पतन्तो यत्र जन्तवः ।
नैव भोज्ये निरीक्ष्यन्ते, तत्र भुञ्जीत को निशि ॥ ४६ ।। रात्रि में घोर अंधकार के कारण भोजन में गिरते हुए जीव आँखों से दिखाई देते, अतः ऐसी रात्रि में कौन समझदार व्यक्ति भोजन करेगा? रात्रि-भोजन से हानियाँ
मेधां पिपीलिका हन्ति, यूका कुर्याजलोदरम् ।
कुरुते मक्षिका वान्नि, कुष्ठरोगं च कोलिकः ॥ ५० ॥ भोजन के साथ चिउँटी खाने में आ जाए तो वह बुद्धि का नाश करती है, जू जलोदर रोग उत्पन्न करती है, मक्खी से वमन हो जाता है और कोलिक-छिपकली से कोढ़ उत्पन्न होता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org