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प्रथम प्रकाश
चिरकाल से उपार्जन किये हुए पापों को योग उसी तरह नष्ट कर देता है, जैसे इकट्ठी की हुई बहुत-सी लकड़ियों को अग्नि क्षण भर में भस्म कर देती है ।
कफविमलाम सर्वौषधमहर्द्धय । सम्भिन्नश्रोतोलब्धिश्च योगं ताण्डवडम्बरम् ॥ ८ ॥
कफ, मूत्र, मल, अमर्श और सर्वोषध ऋद्धियाँ तथा संभिन्नश्रोतलब्धि, यह सब योग के ही प्रभाव से प्राप्त होती हैं ।
टिप्पण-योग के अचिन्त्य प्रभाव से योगी जनों को नाना प्रकार की अद्भुत ऋद्धियाँ प्राप्त होती हैं। किसी योगी को ऐसी ऋद्धि प्राप्त होती है कि उसका कफ समस्त रोगों के लिए श्रौषध बन जाता है, किसी के मूत्र में रोगों का शमन करने की शक्ति श्रा जाती है, मल में सब बीमारियों को हटा देने का सामर्थ्य उत्पन्न हो किसी के स्पर्श मात्र से रोग दूर हो जाते हैं ।
किसी के जाता है,
किसी-किसी के मल, मूत्र आदि सभी श्रौषध रूप हो जाते हैं । यह सब महान् ऋद्धियाँ योग के ही प्रभाव से उत्पन्न होती हैं । इनके प्रतिरिक्त संभिन्नश्रोतोलब्धि भी योग का ही एक महान् फल है । faridafor का स्वरूप इस प्रकार है
सर्वेन्द्रियाणां विषयान् गृह्णात्येकमपीन्द्रियम् । यत्प्रभावेन सम्भिन्नश्रोतोलब्धिस्तु सा मता ॥
जिस लब्धि के प्रभाव से एक ही इन्द्रिय सभी इन्द्रियों के विषय को ग्रहण करने लगती है, वह संभिन्नश्रोतोलब्धि कहलाती है ।
टिप्पण - यह लब्धि जिसे प्राप्त होती है वह स्पर्शेन्द्रिय से रस, गंध, रूप और शब्द को ग्रहण कर लेता है, जीभ से सूंघता और देखता है, नाक से चखता और देखता है, प्राँख से सुनता है, सूंघता है, चखता है,
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