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योग-शास्त्र
.. मन ही मन में बोलना-दूसरों को मन की बात कहने की शक्ति का न होना ‘मन्मनत्व' दोष है। जीभ के लथड़ा-लड़खड़ाजाने से स्पष्ट उच्चारण करने का सामर्थ्य ने होना 'काहलत्व' दोष है । वचनों का उच्चारण ही न कर सकना 'मूकत्व' दोष है । मुख में विभिन्न प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न हो जाना 'मुखरोगिता' दोष कहलाता है । यह सब असत्य भाषण करने के फल हैं । इन फलों को देखकर श्रावक को कन्यालीक आदि स्थूल असत्य भाषण का त्याग करना चाहिए। असत्य के भेद
कन्यागोभूम्यलीकानि, न्यासापहरणं तथा।
कूटसाक्ष्यञ्च पञ्चेति, स्थूलासत्यान्यकीर्तयन् ।। ५४ ।। . जिनेन्द्र देव ने १. कन्यालीक, २. गो-अलीक, ३. भूमि-अलीक, . ४. न्यासापहार और ५. कूट-साक्षी; यह पाँच स्थूल असत्य कहे हैं ।
टिप्पण-कन्या के सम्बन्ध में मिथ्या भाषणं करना 'कन्यालीक' कहलाता है, जैसे-सुरूप को कुरूप कहना । गाय के विषय में असत्य बोलना 'गो-अलीक' कहलाता है, जैसे-थोड़ा दूध देने वाली गाय को बहुत दूध देने वाली कहना या बहुत दूध देने वाली को थोड़ा दूध देने वाली कहना। भूमि के विषय में मिथ्या भाषण करना 'भूम्यलीक' है, जैसे--पराई जमीन को अपनी कहना या अपनी को पराई कह देना। दूसरे की धरोहर-अमानत को हजम कर जाना 'न्यासापहार' कहलाता है। कचहरी या पंचायत प्रादि में झूठी साक्षी देना 'कूट-साक्षी' है । इस तरह यह पाँच प्रकार का स्थूल असत्य है । ___ यहाँ 'कन्या', 'गो' और 'भूमि' शब्द उपलक्षण मात्र हैं। अतः इन शब्दों से इनके समान अन्य पदार्थों का भी ग्रहण समझना चाहिए जैसे'कन्या' शब्द से लड़का, स्त्री, पुरुष आदि समस्त द्विपदों-दो पैर वालों का ग्रहण होता है । 'गो' शब्द से बैल, भैंस आदि सब चतुष्पदों को समझना
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