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योग-शास्त्र
स्त्री (काम-वासना) महात्मा पुरुषों के भी चित्त में स्थान पाकर उनके सुन्दर गुणों को दूर कर देती है । अर्थात् विषय-वासना के सेवन । से सद्गुणों का नाश होता है। इतना ही नहीं, बल्कि मन में भी विषय-विकारों एवं काम-भोगों का चिन्तन करने से भी सद्गुणों का नाश होता है। स्त्री-दोष
वञ्चकत्वं नृशंसत्वं, चञ्चलत्वं कुशीलता। इति नैसर्गिका दोषा-यासां तासु रमेत कः ?॥ ८४ ॥ प्राप्तुपारमपारस्य, पारावारस्य पार्यते । स्त्रीणां प्रकृतिवक्राणां, दुश्चरित्रस्य नो पुनः ।। ८५ ॥ नितम्बिन्यः पति-पुत्रं, पितरं-भ्रातरं क्षणात्। आरोपयन्त्यकार्येऽपि, दुर्वृत्ताः प्राणसंशये ॥ ८६ ॥ भवस्य बीजं नरकद्वार-मार्गस्य दीपिका ।
शुचां कन्दः कलेमलं, दुःखानां खनिरङ्गना ।। ८७ ।। जिन स्त्रियों में छल-कपट, कठोरता, चंचलता, स्वभाव की दुष्टता, आदि दुर्गुण स्वाभाविक हैं, उनमें कौन बुद्धिमान् रमण करेगा?
जिसका किनारा दिखाई नहीं देता, उस समुद्र का किनारा पाया जा सकता है, किन्तु स्वभाव से ही कुटिल स्त्रियों की दुष्ट चेष्टाओं का पार पाना कठिन है।
यौवन के उन्माद से मतवाली बनी हुई दुराचारिणी स्त्रियाँ बिना स्वार्थ अथवा तुच्छ स्वार्थ के लिए अपने पति के, पुत्र के, पिता के और भ्राता के प्राण ले लेती हैं या उनके प्राणों को खतरे में डाल देती हैं ।
वासना जन्म-मरण रूप संसार का कारण है, नरक में प्रवेश करने का मार्ग दिखलाने वाला दीपक है, शोक को उत्पन्न करने वाली है और शारीरिक एवं मानसिक दुःखों की खान है।
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