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तृतीय प्रकाश हैं । यथा-अनाज, पुष्पमाला, पान, विलेपन आदि वस्तुएँ भोग हैं और वस्त्र, अलंकार, घर, शय्या, आसन, वाहन आदि उपभोग हैं।
इनमें से भोग-खाने-पीने के काम में आने वाली. अनेक वस्तुएँ सर्वथा त्याग करने योग्य हैं और अनेकों नियम करने योग्य हैं । पहिले सर्वथा त्याग करने योग्य वस्तुओं को बताते हैं ।
मद्यं मांसं नवनीतं मधूदुबरपञ्चकम् । अनन्तकायमज्ञातफलं रात्रौ च भोजनम् ।। ६ ।। प्राम-गोरस-संपृक्त द्विदलं पुष्पितौदनम् ।
दध्यद्वितीयातीतं क्वथितान्न विवर्जयेत् ।। ७ ॥ प्रत्येक प्रकार की शराब, मांस, शहद, गूलर आदि पाँच प्रकार के फल, अनन्तकाय-कंदमूलादि, अनजाने फल, रात्रि-भोजन, कच्चे दूध, दही तथा छाछ के साथ द्विदल खाना, बासी अनाज, दो दिन के बाद का दही तथा चलित रस वाले-सड़े अन्न का त्याग करना चाहिये । मदिरा-पान के दोष
मदिरापानमात्रेण बुद्धिर्नश्यति दूरतः । वैदग्धी बंधुरस्यापि दौर्भाग्येणेव कामिनी ।। ८ ।। पापाः कादंबरीपान - विवशीकृत - चेतसः । जननी हा प्रियीयंति जननीयन्ति च प्रियाम् ।। ६ ।। न जानाति परं स्वं वा मद्याच्चलित चेतनः । स्वामीयति वराकः स्वं स्वामिनं किंकरीयति ॥ १० ॥ मद्यपस्य शवस्येव लुठितस्य चतुष्पथे । मूत्रयन्ति मुखे श्वानो व्यात्त विवरशंकया ॥ ११ ॥ मद्यपानरसे मग्नो नग्नः स्वपिति चत्वरे। . गूढं च स्वाभिप्रायं प्रकाशयति लीलया ।। १२ ॥
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