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योग-शास्त्र मैथुन का परिणाम बड़ा ही भयानक होता है। अतः प्रबुद्ध-पुरुष पहले से ही उसके दुष्परिणाम को समझकर उसका परित्याग कर देते हैं। . . मैथुन का फल
कम्पः स्वेदः श्रमो मूर्छा, भ्रमिग्लानिर्बलक्षयः ।
राजयक्ष्मादि रोगाश्च, भवेयुमैथुनोत्थिताः ॥७८॥ ... मैथुन से कम्प-कप-कपी, स्वेद-पसीना, श्रम-थकावट, मूर्छामोह, भ्रमि-चक्कर आना, ग्लानि-अंगों का टूटना, शक्ति का विनाश, राजयक्ष्मा–क्षय रोग तथा अन्य खांसी, श्वाँस आदि रोगों की उत्पत्ति होती है।
टिप्पण-मैथुन का सेवन करने से वीर्य का विनाश होता है। वीर्य का विनाश होने पर शरीर निर्बल हो जाता है। शरीर की निर्बलता से विविध प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। मैथुन में हिंसा
योनियन्त्र-समुत्पन्नाः सुसूक्ष्मा जन्तुराशयः।
पीड्यमाना विपद्यन्ते, यत्र तन्मैथुनं त्यजेत् ।।७।। मैथुन का सेवन करने से योनि रूपी यंत्र में उत्पन्न होने वाले अत्यन्त सूक्ष्म जीवों के समूह पीड़ित होकर विनाश को प्राप्त होते हैं, इसलिए मैथुन का त्याग करना ही उचित है । काम-शास्त्र का मत
रक्तजाः कृमयः सूक्ष्मा, मृदुमध्याधिशक्तयः ।
जन्मवर्त्मसु कण्डूति, जनयन्ति तथाविधाम् ।। ८० ।। काम-शास्त्र के प्रणेता आचार्य वात्स्यायन ने भी योनि में सूक्ष्म जन्तुओं का अस्तित्व स्वीकार किया है। वे कहते हैं-रुधिर से उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जंतु योनि में होते हैं। उनमें से अनेक साधारण शक्ति
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