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द्वितीय प्रकाश मात्र से, नरक का अतिथि बनना पड़ा, तो परस्त्री-गमन करने वाले साधारण पुरुषों का तो कहना ही क्या है ?
कहते हैं, रावण की प्रतिज्ञा थी कि जब तक कोई स्त्री उसे स्वेच्छा से स्वीकार नहीं करेगी, तब तक बलात्कार से वह उसके साथ गमन नहीं करेगा। फिर भी उसने सीताजी के शील को खंडित करने की कामना की थी और इस कामना के कारण उसे नरक में जाना पड़ा। परस्त्री-त्याग
लावण्य-पुण्यावयवां, पदं सौन्दर्य-सम्पदः ।
कलाकलाप-कुशलामपि जह्यात् परस्त्रियम् ॥ १०० ॥ परस्त्री लावण्य से युक्त पवित्र अवयवों वाली हो-उसका अंग-अंग मनोहर रूप वाला हो, सौन्दर्य रूपी सम्पत्ति का आधारभूत हो और समस्त कलाओं में कुशल हो, तो भी उसका परित्याग करना चाहिए। सुदर्शन की महिमा
अकलङ्कमनोवृत्तेः परस्त्री-सन्निधावपि ।
सुदर्शनस्य किं ब्रूमः, सुदर्शन-समुन्नतेः ॥ १०१ ॥ परस्त्री के समीप में भी अपनी चित्तवृत्ति को विकार रहित बनाये रखने वाले, सम्यग्दर्शन की प्रभावना करने वाले सेठ सुदर्शन की कहाँ तक प्रशंसा की जाय ! इससे उसके यश में अभिवृद्धि ही हुई। पर-पुरुष त्याग
ऐश्वर्यराजराजोऽपि, रूपमीनध्वजोऽपि च ।
सीतया रावण इव, त्याज्यो नार्या नरः परः ॥ १०२ ।। - ऐश्वर्य से कुबेर के समान रूप से कामदेव के समान सुन्दर होने
पर भी स्त्री को परपुरुष का उसी प्रकार त्याग कर देना चाहिए, जैसे . सीता ने रावण का त्याग किया था।
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